Friday, June 12, 2020

चींटियाँ कतार बना कर चल रही हैं बिना किसी आपसी टकराव के

कितना असभ्य लगता है
कि भुखमरी, शोषण, हत्या आदि के खिलाफ
जिन्हें लड़ना था मिलकर
वे आपस में लड़ने लगे हैं
वैश्विक संक्रमण के इस दौर में
यह फासीवादी सत्ता की जीत है
जिस वक्त एक-दूसरे की ताकतों पर बात करनी थी
उस वक्त वे एक-दूसरे की कमियां गिना रहे हैं !
सोचकर देखिएगा-
कहीं हम फासीवाद के जाल में तो नहीं फंस गये हैं
बांटो और राज करो की नीति का शिकार तो नहीं बन गये हैं !
यह हमलों का दौर है
किंतु पहले दुश्मन की पहचान ज़रूरी है
विभाजनकारी ताकतों की शिनाख्त ज़रूरी है
मित्र बनकर भीतर बैठा शत्रु सबसे घातक होता है
एक भी गलत निशाना विनाश ला सकता है
पूरे शरीर को नीला पड़ने से पहले
इस ज़हर को फैलने से रोकना होगा
नफ़रत का संक्रमण सबसे पहले
इंसानियत को मार देता है
अब, जब उड़ चुकी है रातों की नींद हमारी
तो सपनों की बात फ़ुज़ूल है
कितना ज़हर भर चुका है हमारे भीतर
यह जांचने का वक्त है
हमने बिना सोचे ही गिद्धों को बदनाम किया है
और वे विलुप्त होते चले गये शर्म से
इस तरह हम बेशर्म हो गये
मेरे कमरे के बाहर चींटियाँ कतार बना कर चल रही हैं
बिना किसी आपसी टकराव के !!

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