हो सकता है
इस वक्त जब दिल्ली में
आकाश बरस रहा है
और आप रजाई में बैठ
गर्म चाय की चुसकी लेते हुए
अपना मोबाइल स्क्रॉल कर रहे हों
ठीक इसी वक्त दिल्ली की सीमा में बैठे किसानों के
भीगे हुए चेहरों को सोचिये
एक बार
ठंड में ठिठुरते हुए
उनके होंठों को सोचिये
आखिर वे क्यों बैठे हैं
क्यों अब तक पांच दर्जन जाने चली गईं?
सोचिये इस सवाल को एक बार
इस वक्त जब उन्हें होना चाहिए था
अपने खेतों पर
वे मजबूर हैं सड़क पर सोने को
इस बारिश से राजपथ चमक उठे शायद
किंतु किसानों के खून का गंध शेष रह जायेगा
very true and so sensitive. beautiful poem full with pain!
ReplyDeletevery true and so sensitive. beautiful poem full with pain!
ReplyDeleteविचारणीय
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