अणु - अणु से बना
आदमी अब -
परमाणु खायेगा
परमाणु देखेगा
परमाणु सोयेगा
भारतीय किसान खेतों में अब शायद
परमाणु ही बोयेगा .
एक कार्बाइड ने
जलाया था भोपाल
एक ही रात में मर गए थे
हजारों नन्हे गोपाल
अब परमाणु की बारी है
अब भोपाल नही
सिर्फ गोपाल नही
शायद जलेगा सारा देश
किसकी मज़ाल,
किसकी औकात
कौन करेगा
इन व्यापारिओं पर केस ?
किसे याद है
हिरोशिमा - नागासाकी के
वे मौत के भयानक चित्रों का
कौन समझाए इन्हें
गहरी साजिस
इन व्यापारी मित्रों का ?.
लेकर घुसे पिज्जा
बनना चाहते हैं जीजा
पेप्सी - कोक का ज़हर बनाकर
कहते हैं -
ठंडा समझ कर पी-जा .
मोह लिया है "मन"
मोहन का
कितना अच्छा उपाय खोजा है
भारतीयों के दोहन का .
बांसुरी नही आज
मोहन के पास
मन में बजता है सीटी
एकदम से रुक जायेगा
जब आयेगा सीटीबीटी.
Tuesday, August 31, 2010
Sunday, August 29, 2010
पुण्य कैसे मिलेगा
यही एक सवाल
आता है दिल में , कि
पुण्य कैसे मिलेगा ?
क्या सिर्फ -
माता - पिता की सेवा से
या फिर -
तीर्थों की यात्रा भर से ?
अपने कर्मों को
सही दिशा देने से
क्या नही मिलता है पुण्य किसी को ?
क्या सही - क्या गलत
कैसे करूँ मुल्यांकन
क्या सिर्फ
बेचना और बिकना ही सत्य है आज ?
या फिर
सत्य आज भी बचा है
सत्य बनकर हमारे बीच ?
क्या पुण्य उस सत्य को स्वीकार करने से मिलता है
जिस झूट को सच बनाकर परोसा जाता है ?
मन नही मानता
इस सार्वजनिक झूठी सच को
क्या कोई बता सकता है
आधुनिक सत्य का चित्र
कहाँ मिलेगा मुझे ?
या सत्य भी आज बिक चुका है
आदमी की तरह /
राजा के दरवार में रहकर
राजा की आलोचना करना
पाप है या पुण्य ?
मैंने किया है इसे कई बार
यह कला मैंने विदुर से सीखी है .
क्या मुझे मिलेगा इस युग में
किसी नर- नारायण का साथ ?
या -
नारायण भी बिक गए आज कौरवों के हाथ ?
न मैं मीरा
न मैं सुकरात
विषपान नही करूंगा
पुण्य मिले
या न मिले
मैं ऐसे ही जीऊंगा.
आता है दिल में , कि
पुण्य कैसे मिलेगा ?
क्या सिर्फ -
माता - पिता की सेवा से
या फिर -
तीर्थों की यात्रा भर से ?
अपने कर्मों को
सही दिशा देने से
क्या नही मिलता है पुण्य किसी को ?
क्या सही - क्या गलत
कैसे करूँ मुल्यांकन
क्या सिर्फ
बेचना और बिकना ही सत्य है आज ?
या फिर
सत्य आज भी बचा है
सत्य बनकर हमारे बीच ?
क्या पुण्य उस सत्य को स्वीकार करने से मिलता है
जिस झूट को सच बनाकर परोसा जाता है ?
मन नही मानता
इस सार्वजनिक झूठी सच को
क्या कोई बता सकता है
आधुनिक सत्य का चित्र
कहाँ मिलेगा मुझे ?
या सत्य भी आज बिक चुका है
आदमी की तरह /
राजा के दरवार में रहकर
राजा की आलोचना करना
पाप है या पुण्य ?
मैंने किया है इसे कई बार
यह कला मैंने विदुर से सीखी है .
क्या मुझे मिलेगा इस युग में
किसी नर- नारायण का साथ ?
या -
नारायण भी बिक गए आज कौरवों के हाथ ?
न मैं मीरा
न मैं सुकरात
विषपान नही करूंगा
पुण्य मिले
या न मिले
मैं ऐसे ही जीऊंगा.
Thursday, August 26, 2010
तीन छोटी कवितायेँ
एक
रेडियो पर लव गुरु
और --
टीवी पर बाबा
अपनी -अपनी दुकान खोलकर
कान और नाक पकड़ कर
निकल रहे हैं लोगों की हवा .
रेडियो लव गुरु अध्यापन नही करता
सिखाता है लव
सोचता हूं जनता को
अक्ल आयेगी कब ?
लवगुरु के बातों का फंदा
कर देता है प्यार ठंडा
इसी को कहते हैं ---
चालाक बंदा
प्रेम क्या रेडियो की चीज़ है ?
किउन करते हो नीलाम
जब तुम में प्रेम नही बसता
लव गुरु किस काम ?
प्रेम यदि सीखना है
तो जानो --
मीरा - कबीर को
प्रेम आप- ही बहेगा
दिल से मिटा दो जो नफरत को /
______________________
दो
भारत के समाचार चैनेलो पर
दिखते हैं अब भूत
और -
संवाददाता घुमते हैं
बनकर उनके दूत .
__________________
तीन
सब बन रहे हैं बाबा
तुम भी हो जाओ बाबा
पायोगे लोगों की झूठी वाह - वाह
तुम भी बन जाओ गुरु
कर लो नया व्यापार शुरू
नाम तुम्हारा क्या है ?
आशा या निराशा
देव ,देवा या कोई अंशु हो नाम के पीछे
आसन बिछाकर बैठ जाओ
ऊपर हो या नीचे
बस तुम एक काम करना
महाराज या राम जोड़ना
अपने नाम के आगे .
रेडियो पर लव गुरु
और --
टीवी पर बाबा
अपनी -अपनी दुकान खोलकर
कान और नाक पकड़ कर
निकल रहे हैं लोगों की हवा .
रेडियो लव गुरु अध्यापन नही करता
सिखाता है लव
सोचता हूं जनता को
अक्ल आयेगी कब ?
लवगुरु के बातों का फंदा
कर देता है प्यार ठंडा
इसी को कहते हैं ---
चालाक बंदा
प्रेम क्या रेडियो की चीज़ है ?
किउन करते हो नीलाम
जब तुम में प्रेम नही बसता
लव गुरु किस काम ?
प्रेम यदि सीखना है
तो जानो --
मीरा - कबीर को
प्रेम आप- ही बहेगा
दिल से मिटा दो जो नफरत को /
______________________
दो
भारत के समाचार चैनेलो पर
दिखते हैं अब भूत
और -
संवाददाता घुमते हैं
बनकर उनके दूत .
__________________
तीन
सब बन रहे हैं बाबा
तुम भी हो जाओ बाबा
पायोगे लोगों की झूठी वाह - वाह
तुम भी बन जाओ गुरु
कर लो नया व्यापार शुरू
नाम तुम्हारा क्या है ?
आशा या निराशा
देव ,देवा या कोई अंशु हो नाम के पीछे
आसन बिछाकर बैठ जाओ
ऊपर हो या नीचे
बस तुम एक काम करना
महाराज या राम जोड़ना
अपने नाम के आगे .
Wednesday, August 25, 2010
इस पानी को हल्का मत समझो
जिस पानी को तुम समझ रहे हो
आज हल्का
इसी पानी ने स्वयं
तोड़कर चट्टानों को बनाया अपना रास्ता
और मैदानों में जाकर दिखाया
अपना भव्य रूप .
यह वही पानी है
जिसने शायद -
उजाड़ा था हड़प्पा - मोहंजोदारो को
और शायद -
दौड़ती है रक्त बन कर हमारी नशों में
और गंगा - कावेरी - गोदावरी के रूप में
हमारी संस्कृति में .
यह वही पानी है
जो -
द्रव रूप में संचित है पुष्प कलश में
यह वही पानी है
जो-
निकला था शिव की जटा से
और -
सीता और द्रौपदी की नैनों से अश्क बनकर
और बना था काल कारण
रावण और कौरवों का .
मत उसकाओ इसे 'सैलाब' के लिए
नीलगगन के आंगन में उड़ते
बादलों को हल्का मत समझो
कहर बन कर गिरा था यह
लेह- लद्दाख में.
इसके विशाल स्वरुप को देखो जाकर-
प्रशांत- हिंद महासागर में
इसकी सभ्यता की निशां
आज भी बाकि है
नील- सिधु के किनारे .
बांध बनाकर रोकोगे
इसे कबतक ?
सब तोड़ कर बह जायेगा
सुनामी बनकर आयेगा
सब कुछ बहा ले जायेगा .
आज हल्का
इसी पानी ने स्वयं
तोड़कर चट्टानों को बनाया अपना रास्ता
और मैदानों में जाकर दिखाया
अपना भव्य रूप .
यह वही पानी है
जिसने शायद -
उजाड़ा था हड़प्पा - मोहंजोदारो को
और शायद -
दौड़ती है रक्त बन कर हमारी नशों में
और गंगा - कावेरी - गोदावरी के रूप में
हमारी संस्कृति में .
यह वही पानी है
जो -
द्रव रूप में संचित है पुष्प कलश में
यह वही पानी है
जो-
निकला था शिव की जटा से
और -
सीता और द्रौपदी की नैनों से अश्क बनकर
और बना था काल कारण
रावण और कौरवों का .
मत उसकाओ इसे 'सैलाब' के लिए
नीलगगन के आंगन में उड़ते
बादलों को हल्का मत समझो
कहर बन कर गिरा था यह
लेह- लद्दाख में.
इसके विशाल स्वरुप को देखो जाकर-
प्रशांत- हिंद महासागर में
इसकी सभ्यता की निशां
आज भी बाकि है
नील- सिधु के किनारे .
बांध बनाकर रोकोगे
इसे कबतक ?
सब तोड़ कर बह जायेगा
सुनामी बनकर आयेगा
सब कुछ बहा ले जायेगा .
Sunday, August 22, 2010
किस काम का यह आदमी ?
चारो ओर आदमी
सिर्फ आदमी -ही- आदमी
किस काम का यह आदमी ?
रोता आदमी
हँसता आदमी
उन्माद आदमी
सिर्फ आदमी -ही - आदमी
किस काम का यह आदमी
डरा हुआ आदमी
टूटा हुआ आदमी
बेकार -बेरोजगार आदमी
किस काम का यह आदमी
क्रूर आदमी
भयानक आदमी
यांत्रिक आदमी
तांत्रिक आदमी
किस काम का यह आदमी
भ्रष्ट आदमी
नष्ट आदमी
लड़ता आदमी
लड़ाता आदमी
जीता हुआ आदमी
हारा हुआ आदमी
मरता आदमी
बदनाम आदमी
किस काम का यह आदमी ?
पैसा कमाता आदमी
सोता हुआ आदमी
ईर्ष्या से भरा हुआ आदमी
किस काम का यह आदमी ?
बिकता आदमी
बेचता आदमी
बिका हुआ आदमी
व्यापारी आदमी
किस काम का यह आदमी ?
भागता आदमी
थका हुआ आदमी
तपता आदमी
जलता हुआ आदमी
मुहं के बल पड़ा हुआ आदमी
पाला हुआ आदमी
किस काम का आदमी ?
हैरान आदमी
परेशान आदमी
किस काम का आदमी
मुझे म्याफ़ कर देना भाई आदमी .
सिर्फ आदमी -ही- आदमी
किस काम का यह आदमी ?
रोता आदमी
हँसता आदमी
उन्माद आदमी
सिर्फ आदमी -ही - आदमी
किस काम का यह आदमी
डरा हुआ आदमी
टूटा हुआ आदमी
बेकार -बेरोजगार आदमी
किस काम का यह आदमी
क्रूर आदमी
भयानक आदमी
यांत्रिक आदमी
तांत्रिक आदमी
किस काम का यह आदमी
भ्रष्ट आदमी
नष्ट आदमी
लड़ता आदमी
लड़ाता आदमी
जीता हुआ आदमी
हारा हुआ आदमी
मरता आदमी
बदनाम आदमी
किस काम का यह आदमी ?
पैसा कमाता आदमी
सोता हुआ आदमी
ईर्ष्या से भरा हुआ आदमी
किस काम का यह आदमी ?
बिकता आदमी
बेचता आदमी
बिका हुआ आदमी
व्यापारी आदमी
किस काम का यह आदमी ?
भागता आदमी
थका हुआ आदमी
तपता आदमी
जलता हुआ आदमी
मुहं के बल पड़ा हुआ आदमी
पाला हुआ आदमी
किस काम का आदमी ?
हैरान आदमी
परेशान आदमी
किस काम का आदमी
मुझे म्याफ़ कर देना भाई आदमी .
Friday, August 6, 2010
नारी
'नारी' केवल
एक शरीर मात्र नही है
नारी केवल
एक 'शब्द' मात्र नही है
यह केवल एक उपदेश मात्र नही है.
शक्ति की उपासना
तो करते हो न ?
क्या सिर्फ
मिटटी की प्रतिमा ही पूजते हो ?
नारी से हट कर
शक्ति है कहीं ?
पुछ कर देखो
दिलों - दिमाग से
क्या ज़बाव मिला ? नही .
देह से हटकर
आत्मा से जुड़कर
देखो उसे एकबार
माँ दिखी होगी तुम्हे
स्त्री दिखी होगी तुम्हे
इन्सान तो हो न ?
हैरान किउन हो -
नारी की बात पर
संसद में उसे
स्थान नही देना चाहते
घर में , मन में
कंही नही रखना चाहते
सिर्फ बिस्तर पर चाहते हो
स्तन से हटकर
मन तक जाओ
सिद्ध हुआ -
तुम पुरुष हो
आदमी हो केवल
हटाकर देखो
अपने ऊपर से यह लेवल
इन्सान हो
सिद्ध तो करो इस बात को .
एक शरीर मात्र नही है
नारी केवल
एक 'शब्द' मात्र नही है
यह केवल एक उपदेश मात्र नही है.
शक्ति की उपासना
तो करते हो न ?
क्या सिर्फ
मिटटी की प्रतिमा ही पूजते हो ?
नारी से हट कर
शक्ति है कहीं ?
पुछ कर देखो
दिलों - दिमाग से
क्या ज़बाव मिला ? नही .
देह से हटकर
आत्मा से जुड़कर
देखो उसे एकबार
माँ दिखी होगी तुम्हे
स्त्री दिखी होगी तुम्हे
इन्सान तो हो न ?
हैरान किउन हो -
नारी की बात पर
संसद में उसे
स्थान नही देना चाहते
घर में , मन में
कंही नही रखना चाहते
सिर्फ बिस्तर पर चाहते हो
स्तन से हटकर
मन तक जाओ
सिद्ध हुआ -
तुम पुरुष हो
आदमी हो केवल
हटाकर देखो
अपने ऊपर से यह लेवल
इन्सान हो
सिद्ध तो करो इस बात को .
Sunday, August 1, 2010
आज भी
नदियों का यह देश
भारत आज
सूखा पड़ा है
शरतचंद्र का "गफूर "
आज भी -
इस देश में भूखा पड़ा है .
उनका "महेश "
आज घुसता नही
किसी के खेत के भीतर
घुस गए हैं सब महेश आज
विदेशी कंपनियों के भीतर .
गाँधी जी के देश में
अब राज्य बचे हैं केवल
राम गायब हैं
नेता जीवित हैं
हाथों में लेकर -
नए राज्यों की मांग का लेवल .
"निराला जी " की
इलाहबाद की औरत
आज भी तोड़ रही है "पत्त्थर "
उसकी हालत आज
पहले से भी ज्यादा हो गयी है बदतर .
"मुंशी जी " का 'होरी '
अब - नही चाहता 'गोदान'
वह चाहता है मिले उसे आजाद भारत में
दो वक़्त की "रोटी का वरदान "
बहुत रॉकेट भेजा तुमने
अबतक चाँद पर
लेन उसका पानी ज़मीन पर
दयाहीन होकर
किसान मर रहे हैं यहाँ
भूमिहीन होकर .
केदारनाथ जी का 'मजदूर '
आज भी -
जल रहा है , तप रहा है
और -
दानियों का यह देश आज
हाथ फैलाये भाग रहा है .
भारत आज
सूखा पड़ा है
शरतचंद्र का "गफूर "
आज भी -
इस देश में भूखा पड़ा है .
उनका "महेश "
आज घुसता नही
किसी के खेत के भीतर
घुस गए हैं सब महेश आज
विदेशी कंपनियों के भीतर .
गाँधी जी के देश में
अब राज्य बचे हैं केवल
राम गायब हैं
नेता जीवित हैं
हाथों में लेकर -
नए राज्यों की मांग का लेवल .
"निराला जी " की
इलाहबाद की औरत
आज भी तोड़ रही है "पत्त्थर "
उसकी हालत आज
पहले से भी ज्यादा हो गयी है बदतर .
"मुंशी जी " का 'होरी '
अब - नही चाहता 'गोदान'
वह चाहता है मिले उसे आजाद भारत में
दो वक़्त की "रोटी का वरदान "
बहुत रॉकेट भेजा तुमने
अबतक चाँद पर
लेन उसका पानी ज़मीन पर
दयाहीन होकर
किसान मर रहे हैं यहाँ
भूमिहीन होकर .
केदारनाथ जी का 'मजदूर '
आज भी -
जल रहा है , तप रहा है
और -
दानियों का यह देश आज
हाथ फैलाये भाग रहा है .
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...