यही एक सवाल
आता है दिल में , कि
पुण्य कैसे मिलेगा ?
क्या सिर्फ -
माता - पिता की सेवा से
या फिर -
तीर्थों की यात्रा भर से ?
अपने कर्मों को
सही दिशा देने से
क्या नही मिलता है पुण्य किसी को ?
क्या सही - क्या गलत
कैसे करूँ मुल्यांकन
क्या सिर्फ
बेचना और बिकना ही सत्य है आज ?
या फिर
सत्य आज भी बचा है
सत्य बनकर हमारे बीच ?
क्या पुण्य उस सत्य को स्वीकार करने से मिलता है
जिस झूट को सच बनाकर परोसा जाता है ?
मन नही मानता
इस सार्वजनिक झूठी सच को
क्या कोई बता सकता है
आधुनिक सत्य का चित्र
कहाँ मिलेगा मुझे ?
या सत्य भी आज बिक चुका है
आदमी की तरह /
राजा के दरवार में रहकर
राजा की आलोचना करना
पाप है या पुण्य ?
मैंने किया है इसे कई बार
यह कला मैंने विदुर से सीखी है .
क्या मुझे मिलेगा इस युग में
किसी नर- नारायण का साथ ?
या -
नारायण भी बिक गए आज कौरवों के हाथ ?
न मैं मीरा
न मैं सुकरात
विषपान नही करूंगा
पुण्य मिले
या न मिले
मैं ऐसे ही जीऊंगा.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
-
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
-
नमक तो नमक ही है नमक सागर में भी है और इंसानी देह में भी लेकिन, इंसानी देह और समंदर के नमक में फ़र्क होता है! और मैंने तुम्हारी देह का नमक...
-
नदी जब मौन हो नीरव हो रात ध्यान में बैठे हुए ऋषि की तरह निथर हो पर्वत,तब जुगनू क्या कहते हैं वृक्षों से लिपट कर? गाँव के सुनसान रास्ते को ...
Kya soch hai kavi ki....aadhunik jiwan ka sahi mulyankan kia hai !!
ReplyDelete