नदियों का यह देश
भारत आज
सूखा पड़ा है
शरतचंद्र का "गफूर "
आज भी -
इस देश में भूखा पड़ा है .
उनका "महेश "
आज घुसता नही
किसी के खेत के भीतर
घुस गए हैं सब महेश आज
विदेशी कंपनियों के भीतर .
गाँधी जी के देश में
अब राज्य बचे हैं केवल
राम गायब हैं
नेता जीवित हैं
हाथों में लेकर -
नए राज्यों की मांग का लेवल .
"निराला जी " की
इलाहबाद की औरत
आज भी तोड़ रही है "पत्त्थर "
उसकी हालत आज
पहले से भी ज्यादा हो गयी है बदतर .
"मुंशी जी " का 'होरी '
अब - नही चाहता 'गोदान'
वह चाहता है मिले उसे आजाद भारत में
दो वक़्त की "रोटी का वरदान "
बहुत रॉकेट भेजा तुमने
अबतक चाँद पर
लेन उसका पानी ज़मीन पर
दयाहीन होकर
किसान मर रहे हैं यहाँ
भूमिहीन होकर .
केदारनाथ जी का 'मजदूर '
आज भी -
जल रहा है , तप रहा है
और -
दानियों का यह देश आज
हाथ फैलाये भाग रहा है .
Sunday, August 1, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
-
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
-
बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
-
वे सारे रंग जो साँझ के वक्त फैले हुए थे क्षितिज पर मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में तुम्हारे लिए वर्षों से किताब के बीच में रख...
No comments:
Post a Comment