अब ऐसा भी हो सकता है कि
कभी चाँद आये ज़मी पर
और कहे -
जल मत चड़ाओ अब मुझे
किउंकि अब तुम पड़ गए हो
मेरे जल के पीछे
किउन इतना खर्च करते हो
मेरे जल के लिए
भेज रहे हो लोगों को
मुझ तक पानी की खोज के बहाने
जितना पैसा तुम खर्च करते हो
गरीबों को बाँट दो
किसानों को बाँट दो
वे भूख से मर रहे हैं
यदि मेरे घर में
पानी मिला
मैं खुद ही
वर्षा दूंगा धरती पर
कल तक पूजा करते थे
आज भरोसा तो करो कम से कम
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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