आज़ाद भारत में
घुम रहे हैं --
निर्भय होकर शैतान
चोहान -पवार - कलमाड़ी जैसे
मार रहे मैदान .
भूख हड़ताल
शुरू होगया
सुबह नाश्ते के बाद
समाप्त हो जायेगा यह
दोपहर भोजन के बाद .
अनाज सड़ रहा
गोदाम के बाहर
चूहों का हो गया राज
एफ. सी . आइ . के
अफसरों ने
यही किया महान काज .
Tuesday, November 2, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
-
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
-
गाँधी ने पहनी नहीं कभी कोई टोपी फिर उनके नाम पर वे पहना रहे हैं टोपी छाप कर नोटों पर जता रहे अहसान जैसे आये थे बापू इस देश मे...
-
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
lovely presentation that reveals the truth of govt policy and politicians....
ReplyDeleteहमारे समय के पतनोन्मुखी वर्ग को नित्यानंद ने बखूबी पहचान लिया है..भले ही वे सीधे नाम लेकर इसे किसी व्यक्ति के प्रतीक में कह रहे हों पर यह किसी ना किसी प्रकार पूरी व्यवस्था पर उठाये गए सवाल हैं। यह कैसा समय है जहां शेरों को भेडि़यों से खौफजदा होकर जंगल छोड़ना पड़ रहा है। शेरों को अपनी आत्मशक्ति से भरोसा क्यों क्यों उठ गया है..यह चिंता भी कवि के चिंतन के दायरे में है।
ReplyDeleteअसमान वितरण से उपजी विडंबना पर भी नित्यानंद की दृष्टि है..एक ओर अनाज के भरे गोदाम और दूसरी ओर खाली पेट...यह महज संयोग नहीं है, षड़यंत्र है..कवि की दृष्टि मंझेगी तो भविष्य में इन पर्दों को भी उघाड़ेगी, ऐसा विश्वास शुरुआती तेवर देखकर किया जा सकता है। भाषा के स्तर पर आपकी कविता निरंतर परिपक्व हो और कथ्य में गहराई आपको जीवन के सत्यों से परिचित कराए...इस शुभकामना के साथ- कहा जा सकता है कि इन कविताओं में समय की गूंज है,हृदय की वेदना है।
आपका ही
मायामृग
आपके आशीर्वचन से मैं धन्य हुआ .
ReplyDeleteभारतीय वर्तमान को प्रदर्शित करने के के लिए बहुत -बहुत धन्याबाद...
ReplyDelete