सहमे -सहमे से किउन है सब
स्तब्ध सब किउन है आज
गूंगे से अवाक् किउन है आज ?
गाज गिरी क्या तुम पर आज
कैसे करोगे खुद पर नाज़
उठो , जागो फिर से आज
देखो आकाश में
मंडरा रहे बाज़
नज़रुल बुलाये
तुम्हें --
हाथ में लिए अग्निवीणा का साज़
रणभेरी अब बज चुकी है
देखो कबीर कह रहे हैं
कब तक सहोगे इनका राज ?
देखो आगये बंदर
खुद को कह रहे सिकंदर
क्या यही लिखेंगे
हमारा मुकद्दर ?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
-
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
-
बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
-
एक नदी जो निरंतर बहती है हम सबके भीतर कहीं वह नदी जिसने देखा नही कभी कोई सूखा वह नही जिसे प्यास नही लगी कभी मैं मिला हूँ उस ...
अच्छी कविता ...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
ReplyDeleteसही में रन भेरी आपने बजा दी //
ReplyDeletesunder post//
Bahoot sundar aur saNchchi kavita.
ReplyDeleteandhoN me kana raja chunNe ki majboori door karne ke liye kuchh soNchna hoga. ek rasta hai:-
http://www.facebook.com/home.php?sk=group_124022917654097&view=doc&id=127525237303865
देखो आगये बंदर
ReplyDeleteखुद को कह रहे सिकंदर
क्या यही लिखेंगे
xxxxxx
क्या बात है ...बहुत खूब ...हार्दिक शुभकामनायें
नित्यानन्द जी बहुत शानदार रचना है आपकी, बधाई स्वीकार करो।
ReplyDeleteआप जैसे मेरे दूसरे राष्ट्रवादी मित्रों से मेरा आह्वान :
यहां इस देश में सबका ज़मीर मर चुका है,
गरीब का पेट खाली और अमीर का घर भर चुका है।
अगर नहीं जागे तो यूं ही मर जाएंगे क्यूंकि,
जिसे बनाया सरकार हमने वो सरदार डर चुका है।
जय भारत - जय हो : रवींद्र सिंह राठी