Thursday, December 2, 2010

रणभेरी अब बज चुकी है

सहमे -सहमे से  किउन है सब
स्तब्ध सब किउन है आज
गूंगे से अवाक् किउन है आज ?
गाज गिरी क्या  तुम पर आज
कैसे करोगे खुद पर नाज़
उठो , जागो फिर से आज
देखो आकाश में
मंडरा रहे बाज़
नज़रुल बुलाये
तुम्हें --
हाथ में लिए अग्निवीणा का साज़
रणभेरी अब बज चुकी है
देखो कबीर कह रहे हैं
कब तक सहोगे  इनका राज ?
देखो आगये बंदर
खुद को कह रहे सिकंदर
क्या यही लिखेंगे
हमारा मुकद्दर ?

5 comments:

  1. अच्छी कविता ...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

    ReplyDelete
  2. सही में रन भेरी आपने बजा दी //
    sunder post//

    ReplyDelete
  3. Bahoot sundar aur saNchchi kavita.
    andhoN me kana raja chunNe ki majboori door karne ke liye kuchh soNchna hoga. ek rasta hai:-
    http://www.facebook.com/home.php?sk=group_124022917654097&view=doc&id=127525237303865

    ReplyDelete
  4. देखो आगये बंदर
    खुद को कह रहे सिकंदर
    क्या यही लिखेंगे
    xxxxxx
    क्या बात है ...बहुत खूब ...हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  5. नित्यानन्द जी बहुत शानदार रचना है आपकी, बधाई स्वीकार करो।
    आप जैसे मेरे दूसरे राष्ट्रवादी मित्रों से मेरा आह्वान :
    यहां इस देश में सबका ज़मीर मर चुका है,
    गरीब का पेट खाली और अमीर का घर भर चुका है।
    अगर नहीं जागे तो यूं ही मर जाएंगे क्यूंकि,
    जिसे बनाया सरकार हमने वो सरदार डर चुका है।
    जय भारत - जय हो : रवींद्र सिंह राठी

    ReplyDelete

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...