Thursday, April 7, 2011

विचलित नहीं हूँ मैं

इन काले बादलों के पीछे 
जो नीला आकाश है 
वह मेरा है 
जरा भी 
विचलित नहीं हूँ मैं 
इन काली घटाओं की भीड़ से 
हवा के एक झोंके की  
प्रतीक्षा है  मुझे .

9 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता ..

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  2. बहुत सुन्दर ..आशावादी दृष्टिकोण

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  3. बहुत सुन्दर सोच और उसकी अभिव्यक्ति..

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  4. आप सभी का तह दिल से धन्यवाद .

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  5. ITS IS REALLY ULTIMATE way of life

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  6. bhaut achchha likhte hai aap....ati sundar

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  7. शुक्रिया आपका .

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  8. beautiful...lines...filling energy

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...