तुम्हारे वादों पर
भरोसा नही
खुद को खोज रहा हूं भीतर
हो गया अहसास जिस दिन
मेरे होने का
मेरे दोस्त
मैं आलिंगन करूँगा तुम्हारा .
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
achi abhivyakti......sunder rachna
ReplyDeleteVery well written sir:-):-)
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