Monday, April 16, 2012

विश्राम के पश्चात



एक दीर्घ विश्राम
के पश्चात आज
कागज –कलम
एक साथ है
बहुत कुछ
जमा हो गया है ,मन में
कुछ सुनहरे
और कुछ गाद की तरह

अब तीब्र बेचैनी है
बाहर निकलने की
कविता का रूप लेना चाहती है,
स्मृति और भावनाओं का ढेर
जो पकते रहे मेरे भीतर
विश्राम काल  के दौरान

अभी पतझड़ का मौसम है
नग्न है सभी पेड़
नमीहीन हवा बहती है
धुल उड़ाती हुई

कुछ पक्षी जो
बचे हुए हैं
अपने संघर्ष के दम पर
कहीं छिप गए हैं
नए पत्तों के उगने के साथ
लौट आयेंगे
भरोसा है मुझे ..............

10 comments:

  1. एक दीर्घ विश्राम
    के पश्चात आज
    कागज –कलम
    एक साथ है
    बहुत कुछ
    जमा हो गया है ,मन में
    कुछ सुनहरे
    और कुछ गाद की तरह
    swagat hai punaraagaman ka.

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  2. धन्यवाद शुक्ला जी

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  3. कुछ पक्षी जो
    बचे हुए हैं
    अपने संघर्ष के दम पर
    कहीं छिप गए हैं
    नए पत्तों के उगने के साथ
    लौट आयेंगे
    भरोसा है मुझे ......... कहीं और हो न हो , अपने अन्दर एक सुन्दर वन है

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  4. पंछी जरूर लौटेंगे .... शंड भी तो वापस आ गए ... बैचैन हैं बाहर निकलने कों ...

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  5. कविता भी अवश्य बाहर निकलेगी..............पल्लवित होगी.........फलेगी फूलेगी....

    सादर
    अनु

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    1. jab bhi aaye, aisa laaye k man ko bhaye....
      lambe samay k baad ki rachna, arthpurn hai.

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    2. बहुत आभार अनु जी ........

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    3. आप हर बार मेरा हौसला बढ़ाती हैं सुनीता जी इसीलिए जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है हर बार . दिल से आभार आपका ......

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