मैंने पढ़ी थी
सिर्फ एक कविता 'विद्रोही ' कवि की
'बलो वीर '
उन्होंने कहा -
देशद्रोही मुझे
मुझे आई हंसी
और उन्हें क्रोध ....
सिर्फ एक कविता 'विद्रोही ' कवि की
'बलो वीर '
उन्होंने कहा -
देशद्रोही मुझे
मुझे आई हंसी
और उन्हें क्रोध ....
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
gagar men sagar.
ReplyDeleteये तो होना ही था ...
ReplyDeleteशुक्रिया मृदुला जी , दिगम्बर जी
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