Sunday, December 17, 2017

कवि भी खुद को बचाने के फ़िराक में है

यह दौर है
जब हर कोई दिखा देना चाहता है
कि वो क्या है
और इसी दिखाने की चाह में
वह सामने वाले को नीचा दिखाना चाहता है 
और उसे पता ही नहीं चलता कि
वह खुद कितना नीचे गिर चुका है
वैसे इन दिनों यदि आप किसी पार्टी के सदस्य हैं
तो, किसी नीच को 
नीच कहने से बचिएगा 
वरना आपकी सदस्यता समाप्त हो सकती है
आप गुट से बाहर किए जा सकते हैं
मतलब साफ़ है कि
अब नीच को नीच कहना उचित नहीं है
क़ातिल को क़ातिल भी न कहिये
वरना अदालत के ऊपर फ़हरा दिया जायेगा
किसी संगठन का झंडा
और आप झंडू बने देखते रह जाओगे
ऐसी बातों पर भावुक होना मूर्खता है
व्हाट्स एप्प में लगे रहिए
मन बहल जायेगा
दिन गुजर जायेगा
अपने -अपने ज़रूरत के अनुसार
प्रेमी-प्रेमिकाओं ने एक -दूजे को बेवफ़ा क़रार दिया
दुनिया को हंसी आई
पर उन्हें शर्म आई नहीं
धर्म की गर्म हवा फ़ैल चुकी है आकाश पर
नाक ढक कर भी साँस लेंगे तो
रूह जल उठेगी
बेहतर है टीवी पर बिग बॉस देखिये
मन बहल जायेगा
दिन गुजर जायेगा
किसान को मरना ही है
तो मरेगा ज़हर या फांसी से
मेरा कवि
ऐसी कविता लिख कर
खुद को बचाने के फ़िराक में है !

1 comment:

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...