Friday, December 8, 2017

सत्ता को मंजूर नहीं कोई सवाल

मौसम किस कदर बदला देखिये
हत्यारे को माफ़ी मिली
बेगुनाह को फांसी !
रुकी नहीं है अभी
सत्ता की हँसी !
टीवी रोज दिखाए हत्याओं की कहानी
हत्यारे को नहीं
बलात्कार हुआ सबको पता चला
बलात्कारी का चेहरा ढका है
कोई पूछे सवाल - क्यों ? 

मौसम किस कदर बदला देखिये
आग खुद करे अब जलन की बात
हत्यारा करने लगा है
हमारी सुरक्षा की बात
जबकि उसके हाथों में
खून के धब्बे बाकी है अभी तक
उसके जयकार के शोर में
भूख से रोते बच्चे की मौत हो जाती है हर रात
सिपाहियों की कदमों की आहट ने चीर दिया है
रात के सन्नाटे को
तुम्हें भ्रम है
तुम्हारी बस्तियां सुरक्षित है !

राजा अपने कक्ष से
लगातर हंस रहा है
सहमे हुए हमारे चेहरे देख कर
गूंगी प्रजा राजा की ताकत बन चुकी है
सत्ता को मंजूर नहीं कोई सवाल
राजा ने खुद को ईश्वर मान लिया है |

No comments:

Post a Comment

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...