Wednesday, June 20, 2018




अपने समय के तमाम खतरों से जानबूझकर टकराते हुए कविता लिखने का साहस कवि नित्यानंद गायेन की विशिष्टता है। बेशक, इसमें पहचान लिए जाने का खतरा भी शामिल है। ऐसे कठिन समय में जब हर सत्यशोधक और प्रगतिशील सोच का श$ख्स फासीवादी ताकतों से ट्रोल हो रहा है नित्यानंद गायेन का कविता लेखन दुस्साहसिकता का प्रमाण है। आजीविका के सवालों से जूझते हुए और स्थाई कैरियर की चाह में भटकते हुए अधिकांश युवा कवि, कविता को एक पार्ट-टाईम शगल समझने लगते हैं। कवि नित्यानंद गायेन कैरियरिस्ट नहीं हैं, समझौता-परस्त नहीं हैं और शायद इसीलिए साम्राज्यवादी, पूंजीवादी और फासीवादी ताकतों के खिला$फ शंखनाद की आवश्यकता के साथ प्रेम की स्थापना पर भी बल देते हैं। थोथा राष्ट्रवाद और धार्मिक उन्माद की अफीम कुछ अरसे तक युवा जगत को भरमाए रख सकती है लेकिन लम्बे समय तक इसे एक टूल्स की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। जर्मन और हिटलर की पुनरावृत्ति की कोशिशें एक बार फिर पूरी ताकत से सर उठा रही हैं। उन्हें राजनीतिक संरक्षण भी मिल रहा है लेकिन यह बात साबित होती जा रही है कि भारत की जनता को इस पागलपन के वायरस से ग्रसित नहीं किया जा सकता है। भारत देश विविधता में एकता की अनोखी मिसाल है। प्रबल राजनीतिक इच्छा-शक्ति और जनतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए तमाम सवालों के सार्थक समाधान ढूंढने का विकल्प हमेशा खुला रहता है। यह सभी बातें कवि नित्यानंद गायेन की कविताओं में बखूबी उभर कर आती हैं। -अनवर सुहैल


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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...