सड़क पर
रेल पथ पर
या कहीं और
मरते मजदूरों और उनके परिजनों पर
कोई कविता नहीं लिख पाया
सच कहूं तो
मैं हिम्मत नहीं कर पाया
रेल पथ पर
या कहीं और
मरते मजदूरों और उनके परिजनों पर
कोई कविता नहीं लिख पाया
सच कहूं तो
मैं हिम्मत नहीं कर पाया
दरअसल
उन शवों में मैंने हर वक्त
खुद को मरा हुआ पाया
उन शवों में मैंने हर वक्त
खुद को मरा हुआ पाया
न तो मैं रो पाया जोर से
न ही किसी से कह सका
इन तमाम लाशों के बीच
आपने मुझे पहचाना नहीं
मुझे तो लगा
आप सभी ज़िंदा हैं !!
न ही किसी से कह सका
इन तमाम लाशों के बीच
आपने मुझे पहचाना नहीं
मुझे तो लगा
आप सभी ज़िंदा हैं !!
परेशान मत होइए
मजदूर रोज मरते हैं और
जन्म लेते हैं
उनके बिना
कोई सभ्यता खड़ी नहीं हो सकती
किंतु अब उनकी मौत को
हत्या ही कहा जाएगा !!
मजदूर रोज मरते हैं और
जन्म लेते हैं
उनके बिना
कोई सभ्यता खड़ी नहीं हो सकती
किंतु अब उनकी मौत को
हत्या ही कहा जाएगा !!