Thursday, September 10, 2020

चुप्पी की भी सीमा तय हों

 सत्ता

लाशों पर
नक़्क़ाशी करवाती है

सम्राट का महल
जब कभी ढहा दिया जाएगा
मलबे में
इंसानी हड्डियां भी निकलेगी

राजा एक दिन में निरंकुश नहीं हुआ है
प्रजा की ख़ामोशी ने
उसे उकसाया है !

घर गायब होते हुए
बात बस्ती तक पहुंच चुकी है
ज़मीन पहले ही छीन चुकी है
अब आसमान की बारी है

चुप्पी की भी सीमा तय हों
पानी का रंग बदलने लगा है देखिए
कहीं ये हमारा लहू तो नहीं है ?

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