हमारी जीभ को मिल गया है
इंसानी लहू का स्वाद
अब हम सब लहू से बुझाना चाहते हैं
अपनी प्यास
हम सब आदमखोर हो चुके हैं
हम आधुनिक युग के
सभ्य शिकारी हैं
क्या हुआ जो पैने नहीं हैं
हमारे दांत
हम अपनी भाषा से कर सकते हैं
घायल और क़त्ल भी
इस युग का यही सबसे घातक हथियार है
हम आधुनिक युग के
सभ्य शिकारी हैं
हम माहिर हो चुके हैं
भावनाओं का जाल बिछा कर
शिकार करने की कला में
हम संवेदनाओं का मुरब्बा बना कर
खाने लगे हैं
हम आधुनिक युग के
सभ्य शिकारी हैं |
तुम सुबह के इंतज़ार में रहो
इस उम्मीद में
कि कोई आएगा मदद को
हम रातों को काली और लम्बी कर देंगे
हम आधुनिक युग के
सभ्य शिकारी हैं
सब हमें इन्सान समझते हैं !
बहुत खूब। सटिक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशुक्रिया सर .
Deletenice sir....
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