Monday, January 11, 2021

हम शर्मिंदा नहीं हुए अब तक

 और अन्तत: सूरज खिला

राजधानी की सीमाओं पर बैठे किसानों के चेहरे पर
ओस की बूंदे आज उड़ी हैं
सूरज ने आज अपना काम ठीक से किया है
सूरज जानता है
फसल की बालियों को छूकर ही
उसकी किरणों को मिलता है श्रृंगार
बनते हैं गीत
मिलता है नया रूप
लिखी जाती है कविता
दरअसल सूरज ने नमक का कर्ज अदा किया है
जो उसने सोंका था
चैत में किसान की देह से
किसान की लड़ाई में
आज शामिल होकर उसने
जताया है अब आभार
बजंर धरा पर उसे कोई नहीं पूजेगा
जानता है वह ...
हमने अब तक नहीं चुकाया है
अन्नदाताओं का कर्ज़
हम शर्मिंदा नहीं हुए अब तक
क्यों .....!!

1 comment:

युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....

. 1.   मैं युद्ध का  समर्थक नहीं हूं  लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी  और अन्याय के खिलाफ हो  युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो  जनांदोलन से...