Tuesday, January 25, 2022

शिशिर में भीगे पत्तों की तरह शांत रहना चाहता हूँ

 बहुत छोटी-छोटी बातों पर

खुश होना चाहता हूँ
इसलिए एकांत में और किसी दिन
बारिश में चौराहे पर भीगते हुए
मैं रोना चाहता हूँ ...
दर्द के साझा होने पर
दोस्त जब पूछने लगे
बताओ -
उम्मीद क्या है!
किसी बच्चे की तरह उदासी छा जाती है मन पर
और पता नहीं ठीक इसी तरह
मैंने भी अपनी बातों से कितने लोगों को दी है उदासी,
दिया है अवसाद !
जीवन का अपना गणित है
जिस तरह मादक सुगंध और फूलों के रंग से
बदल जाता है चेहरे का भाव
जिस तरह दर्द में
किसी अपने के स्पर्श से मिलता है करार
ऐसे क्षणों का अब रहता है इंतज़ार
शिशिर में भीगे पत्तों की तरह शांत रहना चाहता हूँ
और सूरज की किरणों की प्रतीक्षा में
गुजरना चाहता हूँ रात ...

5 comments:

  1. भावपूर्ण कथ्य।

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  2. विह्वल मन की अत्यंत भावुक पंक्तियाँ।

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  3. शुक्रिया आपका!

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