Wednesday, August 21, 2024

युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....

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1. 

 मैं युद्ध का 

समर्थक नहीं हूं 

लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी 

और अन्याय के खिलाफ हो 

युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो 

जनांदोलन से लड़ी जाए हर लड़ाई।

लड़ाई हो तो केवल वंचितों की हक की लड़ाई हो

गुलामों की आज़ादी की लड़ाई हो

लड़ाई हो तो केवल मानवता की रक्षा में हो

लेकिन मैं चाहता हूं 

लड़ाई अंतिम विकल्प हो 

अगर संवाद के सभी रस्ते बंद कर दिए जाएं।

2.

युद्ध की पीड़ा 

गाज़ा के बच्चों, महिलाओं से पूछो एक बार

फिर नहीं करोगे युद्ध की बात 

सैनिक की उस अकेली मां से पूछो 

जिसका इकलौता बेटा शहीद हो गया है 

सत्ता और राजनीति के कारण 

युद्ध की भयानकता पूछो 

उन बंजर खेतों के किसानों से 

जहां बमबारी हुई थी।

कब्रगाह बन चुके 

उन शहरों से पूछो जो कभी आबाद थे।

Tuesday, August 29, 2023

इक बूंद इंसानियत

 सपनों का क्या है

उन्हें तो बनना और बिखरना है
मेरी फ़िक्र इंसानों की है |

कहीं तो बची रहे आँखों में
इक बूंद इंसानियत
तब हम बचा लेंगे इस धरती को
विनाश के हाथों से |

Saturday, July 2, 2022

बच्चों ने कश्ती में सूखे की पीड़ा लिखी थी

बरसात में कभी देखिये
नदी को नहाते हुए
उसकी ख़ुशी और उमंग को
महसूस कीजिये कभी
विस्तार लेती नदी
जब गाती है
सागर से मिलन का गीत
दोनों पाटों को
बात करते सुनिए

हर नदी की किस्मत में
मिलन नहीं है
फिर भी बारिश में नहाती कोई नदी
जब खुश होती है
पहाड़ खोल देता है अपनी बाहें
झूमता है जंगल
खेत खोल देता द्वार
और कहता -
ओ , नदी ...
थोड़ा संभल कर
मुझे सर्दी लग जाएगी !
खेत,
अपने उदास किसान का
चेहरा सोच कर बुबुदाता है !

कहीं दूर
उस नदी किनारे पर बसा गाँव से निकल कर
कुछ बच्चों ने
कागज की कश्ती बनाई थी
वे उसे
नदी में बहा देना चाहते थे

उस कश्ती में
बच्चों ने
अपनी ख़ुशी भर दी
और बताया
कि, पिछले साल
उनके गाँव के किसान ने
सूखे के कारण
अपनी जान दे दी थी
पानी के आभाव में मरे थे कई मवेशी

बच्चों ने कश्ती में
सूखे की पीड़ा लिखी थी
अब उस गांव में सैलाब है!

Friday, June 17, 2022

मुझे आकाश की भाषा नहीं आती ..

 नदी जब मौन हो

नीरव हो रात
ध्यान में बैठे हुए ऋषि की तरह
निथर हो पर्वत,तब
जुगनू क्या कहते हैं
वृक्षों से लिपट कर?
गाँव के सुनसान रास्ते को
गले लगाकर
क्या कहती है चांदनी ...!
टिमटिमाते तारों से कुछ कहता है
आकाश भी
मुझे आकाश की भाषा नहीं आती ...
(2012)

Friday, January 28, 2022

तुमसे दूरी जरुरी थी


रो कर हल्का होना चाहता हूँ
जब कभी याद आता है
तुम्हारे साथ बिताए वक्त
मेरी आँखों में
उभर आता है तुम्हारा चेहरा
जबकि, मैं भूलना चाहता हूँ तुम्हें
तुम्हारी याद रुलाती है मुझे
मैं तुम्हारी यादों से
आज़ादी चाहता हूँ
वजह कोई नहीं थी

बस खुद को खोजना चाहता हूँ

तुमसे दूरी जरुरी थी
इसलिए
खुद को गुमा दिया!!

Tuesday, January 25, 2022

शिशिर में भीगे पत्तों की तरह शांत रहना चाहता हूँ

 बहुत छोटी-छोटी बातों पर

खुश होना चाहता हूँ
इसलिए एकांत में और किसी दिन
बारिश में चौराहे पर भीगते हुए
मैं रोना चाहता हूँ ...
दर्द के साझा होने पर
दोस्त जब पूछने लगे
बताओ -
उम्मीद क्या है!
किसी बच्चे की तरह उदासी छा जाती है मन पर
और पता नहीं ठीक इसी तरह
मैंने भी अपनी बातों से कितने लोगों को दी है उदासी,
दिया है अवसाद !
जीवन का अपना गणित है
जिस तरह मादक सुगंध और फूलों के रंग से
बदल जाता है चेहरे का भाव
जिस तरह दर्द में
किसी अपने के स्पर्श से मिलता है करार
ऐसे क्षणों का अब रहता है इंतज़ार
शिशिर में भीगे पत्तों की तरह शांत रहना चाहता हूँ
और सूरज की किरणों की प्रतीक्षा में
गुजरना चाहता हूँ रात ...

Tuesday, September 28, 2021

इन्सान नमक हराम होता है!

 नमक तो नमक ही है

नमक सागर में भी है
और इंसानी देह में भी
लेकिन,
इंसानी देह और समंदर के नमक में
फ़र्क होता है!
और मैंने
तुम्हारी देह का नमक खाया है!

उच्च रक्तचाप वालों को नमक से
परहेज करना चाहिए
लेकिन आयोडीन की कमी से
वे रोग ग्रस्त भी हो सकते हैं!

इन्सान नमक हराम होता है!

युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....

. 1.   मैं युद्ध का  समर्थक नहीं हूं  लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी  और अन्याय के खिलाफ हो  युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो  जनांदोलन से...