बकरे ही किउन
होते हैं कुर्बान ?
जिसके न नुकीले पंजे हैं
न ही पैने दांत ।
यह पक्का है काटनेवाला
आँखों की भाषा नही समझता
और बकरा सिर्फ़ आँखों से बोलता है
कटने से पहले ।
किसी भी बकरे को
शहीदों की सूची में नही डाला जाता
बकरा जो ठहरा ।
आदमी तो आदमी
देवता भी खुश होतें हैं
बकरों की बलि से
वह रे देवता ।
हलाल करो या
झटका दो
तड़पना तो पड़ता है
दर्द तो होता है मरने में
जो काटता है उसे
दर्द का अहसास क्या ?
सोचता होगा
बकरा ही तो है
इसका तो जन्म ही हुआ है
कुर्बानी के लिए
बिना बलि
बिना कुर्बानी के
बकरा जीवन व्यर्थ है ।
कितने नसीब वाले होतें हैं
वे बकरे जो
बलि होते है
जो कुर्बान होतें हैं
देवताओं के लिए ।
ऐसी बात नही की
बकरे का सम्मान नही होता
खूब खिलाया जाता है
पूजा कर मंत्र पड़े जाते हैं
कलमें पड़ी जाती है
बलि से पहले
जैसे बकरा
समझता हो
यदि बकरा समझदार होता
तो घास थोड़े खाता ?
क्या अपने देखा किसी
इन्सान को घास खाते ?
Thursday, October 29, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
-
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
-
गाँधी ने पहनी नहीं कभी कोई टोपी फिर उनके नाम पर वे पहना रहे हैं टोपी छाप कर नोटों पर जता रहे अहसान जैसे आये थे बापू इस देश मे...
-
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
ab tak ki sabse achhi kavita lagi mujhe aap ki...thanks sir ji...
ReplyDeleteकविता को अगर व्यपक रूप में देखे /
ReplyDeleteतो लगाता है गरीबी पर एक सशक्त प्रहार किया गया है