सीखना चाहता हूं
चला जाना चाहता हूं
मैं वहां तक
जहाँ तक नजरें जाती हैं .....
जंहाँ देखता हूं रोज
सूरज को डूबता हुए .
मैं पकड़ना चाहता हूं अपने हाथों में
पश्चिम की आकाश में फैले हुए रंगों को
भर लेना चाहता हूं
उन्हें अपने दामन में.
कुमुदनी पर मचलते तितलियों से सीखना चाहता हूं
आशिक बनना
मैं उनका शागिर्द बनना चाहता हूं .
नन्हे पौधों से सीखना चाहता हूं
सर झुकाकर नमन करना , और
सीखना चाहता हूं
मित्रता. किन्तु
मनुष्यों से नहीं
पालतु पशुओं से , किउंकि
वे स्वार्थ के लिए
कभी धोखा नहीं देते .
Saturday, February 20, 2010
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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गाँधी ने पहनी नहीं कभी कोई टोपी फिर उनके नाम पर वे पहना रहे हैं टोपी छाप कर नोटों पर जता रहे अहसान जैसे आये थे बापू इस देश मे...
Well done ...excellent...children should learn this poem....
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