यह भोर की कविता है
इसे लिखने के लिए
मैं रात भर जगता रहा , या फिर
शायद जागकर दिमाग में
इसे सजाता रहा
अनुभव गहरा था
अभिव्यक्ति कठिन
शव्दों में सजाना आसान न था .
नींद ने तो कब से बेवफाई कर ली आँखों से
अब वफ़ा शव्द से मेरा
नौ का आंकड़ा है
या फिर मैं यह कहूँ कि..
वफ़ा शव्द से ही
बेवफाई कर ली मैंने
मैं बेवफा हो गया हूं .
आज मैं यह जो
कविता लिख रहा हूं
यह एक लम्बी कहानी है
इसे समझ पाओगे कि नहीं
कह नहीं सकता
किउंकि यह भोर कि कविता है ......
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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Excellent....
ReplyDeletekya Baat hai Bhai ek ladki ki bewafai ne tume to kavi hi bana dala. Chalo achha hai,lage raho kafi aage jaoge.
ReplyDelete- Anand Patil@Google India-Banglore
इस कविता को लिखने के लिए दिमाक का कितना संतुलन बना के गहराई मे जाना पड़ता है...जैसे समुद्र मे तैरने से पहले आदमी को शारीरिक संतुलन बनाना पड़ता है...काफ़ी अच्छा संतुलन है...काफ़ी अच्छी कविता है...
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