Friday, November 12, 2010

चारमीनार जो खड़ा है

निज़ाम का शहर
हैदराबाद ---
बदल गया है समय के साथ
और --
चारमीनार जो खड़ा है
सदियों से  मूक
 एक  गवाह बनकर
इस बदलाव को
देख रहा है इस बदलते शहर के
तहज़ीब को
बड़ी बारीकी से
पुरानी सड़के अब चमकने लगी है
किन्तु  ----
अब भी दौड़ रहे हैं
नन्हे  नंगे पैर
उन सडको पर  दौड़ती हुई
गाड़ियों के पीछे
उन नंगे पैरों पर दौड़ते
बचपन को सरकार
कल का नागरिक कहती है
इधर लोग रोज़ देख रहे हैं
चारमीनार को
और सोच रहे हैं उसे एक
मूक - बहरा  मीनार मात्र
किन्तु --
इसी चार मीनार ने
देखी और सुनी है
हर बार  तमाम
भयंकर  चीखें .

3 comments:

  1. करार चोट ..नन्हे बच्चों पर किये जा रहे नाइंसाफी को लेकर ....

    ReplyDelete
  2. Nityanand bhai Vikash har tabke tak nahiN ja saka hai. yah hamari vyavstha me kami hai. ise badlane ke liye ham aage badheNge.

    ReplyDelete
  3. कम शब्दों काफी गहरी बात कह डाली आपने | नित्यानंद जी की ये कविता काफी सराहनीय है |

    - कुमार सौरव

    ReplyDelete

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...