निज़ाम का शहर
हैदराबाद ---
बदल गया है समय के साथ
और --
चारमीनार जो खड़ा है
सदियों से मूक
एक गवाह बनकर
इस बदलाव को
देख रहा है इस बदलते शहर के
तहज़ीब को
बड़ी बारीकी से
पुरानी सड़के अब चमकने लगी है
किन्तु ----
अब भी दौड़ रहे हैं
नन्हे नंगे पैर
उन सडको पर दौड़ती हुई
गाड़ियों के पीछे
उन नंगे पैरों पर दौड़ते
बचपन को सरकार
कल का नागरिक कहती है
इधर लोग रोज़ देख रहे हैं
चारमीनार को
और सोच रहे हैं उसे एक
मूक - बहरा मीनार मात्र
किन्तु --
इसी चार मीनार ने
देखी और सुनी है
हर बार तमाम
भयंकर चीखें .
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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ReplyDeleteNityanand bhai Vikash har tabke tak nahiN ja saka hai. yah hamari vyavstha me kami hai. ise badlane ke liye ham aage badheNge.
ReplyDeleteकम शब्दों काफी गहरी बात कह डाली आपने | नित्यानंद जी की ये कविता काफी सराहनीय है |
ReplyDelete- कुमार सौरव