Thursday, January 13, 2011

अभिव्यक्ति का स्वर

बंदूक ,गोली
तोप, बम्ब
बन गए हैं ---
विकास के स्तम्भ /

छोटे होते तन के कपड़े
सास बहू के घर के झगड़े , को
मीडिया बना रही --
नारी मुक्ति  और अभिव्यक्ति  का स्वर /

नोट के बदले वोट ले- लो
डालर के बदले देश ले -लो
फिर भी वतन प्यारा
बन चुका है नेता जी  का नारा /

9 comments:

  1. सच भाई ..भरपूर सम्प्रेशिनियता के साथ ..सुंदर काव्य

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  2. Bahut hi accha lika hai aapne.

    Lekin ek sawaal sab paathkon se - Ye to humare problems hai ...kya kisi ke paas iska solution bhi hai??

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  3. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति है आपकी सभी कविताओं में . अच्छा लगा और काफी सुकून मिला .

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  4. भाई नित्यानंद गयें,
    सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति, ऐसे ही विषय के प्रति समर्पित भाव से लिखते रहें और मुझे पाठन हेतु साझीदार बनाते रहें.....,
    शुभभावना और शुभकामना सहित,

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  5. neta ki pol khol rahe ho,

    kuch mehgai ke baarey mein bhi likho mere bhai :-)

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  6. YATHARTH KO JO SADA YAAD RAKH TA HAI...JEEVAN KO JO EK PATHSHAALA MAN KAR VINAMRA PURVAK SEEKHTA HI REHTA HAI...WAHI NITYA ANAND KI AWASTHA MEIN AISEE ARTHPURNA ABHIYAKTI KAR SAKTA HAI...

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...