Monday, May 18, 2020

वे देह से मरे हैं

वे बच भी जाते हैं तो
आत्महत्या कर लेते हैं
क्यों ?
महामारी से अधिक
आत्महत्या से मर रहे हैं लोग
भुखमरी से मर रहे हैं बच्चे
पैदल चलने से मर रहे हैं
हम देख रहे हैं खामोश
मैं कैसे मरूंगा पता नहीं
किंतु अक्सर उन मरने वालों के बीच
ख़ुद को मरा हुआ देखता हूं
वे देह से मरे हैं
हम आत्मा से
अब
सरकारी आदेश है
आत्मनिर्भर बनो!!

1 comment:

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...