Monday, July 6, 2020

हम भी शामिल रहें उनके तमाम अपराधों में

वे लोग चाँद पर
घर बनाने की बात कर रहे थे
सभ्यता का स्थानान्तरण करना चाहते थे
इसी लालच में ग्रह मंगल की खोज में लग गये
जबकि अब तक जिस पृथ्वी पर बसे हुए हैं
उसे बचाने के लिए कुछ नहीं किया
विकास के नाम पर विनाश के हथियार बनाए
हवा में ज़हर मिलाया
और पानी में इंसानी खून
आधुनिकता की चाह में उन्होंने सबसे पहले
संवेदनाओं का क़त्ल किया
उन्होंने धर्म का दुरुपोयोग किया
उन्होंने अपने ईश्वर तक को धोखा दिया
मंदिर-मस्ज़िद के बहाने लोगों को लड़वा दिया
भगवान के नाम पर उन्होंने बस्तियां जला दी
कई नगर उड़ा दिए
उन्होंने प्रेम के नाम पर छल किया
विश्वास के नाम पर धोखा दिया
जंगल काट दिए
पहाड़ तोड़ दिया
नदी सूखा दिए
उन्होंने करोड़ों लोगों को भूखा मार दिया
बच्चों की सांसे रोक दी
इस तरह हर हत्या को जायज़ बनाने के लिए
कोई न कोई बहाना खोज लिया
उन्होंने इंसानों को गुलाम बनाया
और उसे व्यापार कहा
हम भी शामिल रहें उनके तमाम अपराधों में
हम ख़ामोशी से देखते रहे
सहते रहे सब कुछ

2 comments:

  1. आ नित्यानन्द जी, भावों के धरातल पर सशक्त रचना !
    मैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में शामिल कर लिया है। मेरा ब्लॉग एड्रेस :
    https://marmagyanet.blogspot.com है। कृपया मेरा ब्लॉग विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं ! सादर ! --ब्रजेन्द्र नाथ

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...