हम कितना जानते हैं
और कितने जुड़े हुए हैं
पूर्वोत्तर के लोगों से , उनके दर्द, तकलीफ़
जीवन-संघर्ष से
और कितना जानते हैं उनकी ज़रूरतों के बारे ?
और कितने जुड़े हुए हैं
पूर्वोत्तर के लोगों से , उनके दर्द, तकलीफ़
जीवन-संघर्ष से
और कितना जानते हैं उनकी ज़रूरतों के बारे ?
यह सवाल आज अचानक नहीं उठा है मन में
जब कभी फोन से पूछता हूँ वहां किसी मित्र से हाल
और कहता हूँ
-आप लोगों की ख़बर नहीं मिलती
तब हमेशा सुनने को मिलता है एक ही बात -
यहां से भारत बहुत दूर है !
जब कभी फोन से पूछता हूँ वहां किसी मित्र से हाल
और कहता हूँ
-आप लोगों की ख़बर नहीं मिलती
तब हमेशा सुनने को मिलता है एक ही बात -
यहां से भारत बहुत दूर है !
इरोम शर्मीला को भी हम अक्सर याद नहीं करते हैं
कुछ ज़रूरत भर अपने लेखन और भाषण में
करते हैं उनका जिक्र
ब्रह्मपुत्र जब बेकाबू होकर डूबो देता है वहां जीवन
बहा ले जाता है सब कुछ
हम कांजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में मरे हुए जानवरों की तस्वीरें साझा करते हैं
हमारी संवेदनाएं तैरने लगती है
सोशल मीडिया की पटल पर
कुछ ज़रूरत भर अपने लेखन और भाषण में
करते हैं उनका जिक्र
ब्रह्मपुत्र जब बेकाबू होकर डूबो देता है वहां जीवन
बहा ले जाता है सब कुछ
हम कांजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में मरे हुए जानवरों की तस्वीरें साझा करते हैं
हमारी संवेदनाएं तैरने लगती है
सोशल मीडिया की पटल पर
सेवेन सिस्टर राज्यों के कितनी बहनों को
हमने दिल्ली में अपमानित होते देख अपनी आवाज़ उठाई है ?
जब कोई हमारी गली में उन्हें
चीनी, नेपाली, चिंकी, छिपकली
और अब कोरोना कह कर अपमानित करता है
हमने कब उसका प्रतिवाद किया है
कब हमने जुलूस निकाला है उनके अपमान के खिलाफ़
याद हो तो बता दीजिए
हमने दिल्ली में अपमानित होते देख अपनी आवाज़ उठाई है ?
जब कोई हमारी गली में उन्हें
चीनी, नेपाली, चिंकी, छिपकली
और अब कोरोना कह कर अपमानित करता है
हमने कब उसका प्रतिवाद किया है
कब हमने जुलूस निकाला है उनके अपमान के खिलाफ़
याद हो तो बता दीजिए
हमने नार्थ ईस्ट को सिर्फ सुंदर वादियों , घाटियों
और चेरापूंजी की वर्षा के लिए याद किया अक्सर
अरुणाचल के सूर्योदय के लिए याद किया
हमने कामाख्या मंदिर और ब्रह्मपुत्र के लिए अपनी स्मृति में सजा रखा है
पर हम उनकी तकलीफ़ों में शामिल होने से बचते रहे हैं हमेशा
और चेरापूंजी की वर्षा के लिए याद किया अक्सर
अरुणाचल के सूर्योदय के लिए याद किया
हमने कामाख्या मंदिर और ब्रह्मपुत्र के लिए अपनी स्मृति में सजा रखा है
पर हम उनकी तकलीफ़ों में शामिल होने से बचते रहे हैं हमेशा
सुरक्षा बलों के विशेषाधिकार तो याद है हमें
हमने वहां के लोगों की अधिकार की बात नहीं की है
राजनेताओं का चरित्र तो वहां भी दिल्ली जैसा ही है
और बाकी जो आवाज़ उठाता है अलग होकर
वह कैद कर लिया जाता है
हमने वहां के लोगों की अधिकार की बात नहीं की है
राजनेताओं का चरित्र तो वहां भी दिल्ली जैसा ही है
और बाकी जो आवाज़ उठाता है अलग होकर
वह कैद कर लिया जाता है
भूपेन हज़ारिका के एक गीत के बोल याद आते हैं मुझे -
'दिल को बहला लिया , तूने आस -निराश का खेल किया'
समय अपनी रफ़्तार से चल रहा है
बाढ़ में फिर डूब गया है असम
मेरे दोस्त अब भी कहते हैं - यहां से बहुत दूर है भारत !
'दिल को बहला लिया , तूने आस -निराश का खेल किया'
समय अपनी रफ़्तार से चल रहा है
बाढ़ में फिर डूब गया है असम
मेरे दोस्त अब भी कहते हैं - यहां से बहुत दूर है भारत !
हमने कभी नहीं सोचा
वे ऐसा क्यों कहते हैं !!
वे ऐसा क्यों कहते हैं !!
हम अपने कमरों में बैठकर दार्जिलिंग चाय पी रहे हैं ......
बिल्कुल सही कहा
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