Tuesday, July 7, 2020

हम लाशों की तसवीर उतारने लगे हैं

हमारी संवेदनाओं का आलम न पूछो
हत्यारे को रोक नहीं पाते हत्या करने से
इसलिए हत्या के बाद
हम लाशों की तसवीर उतारने लगे हैं
और हत्या का करते हैं लाइव !
हत्या के वक्त वह चीख़ता रहा
रोता रहा
गिड़गिड़ाते हुए मांगता रहा मदद उम्मीद की नज़रों से
हमारी सुनने की शक्ति ख़त्म हो चुकी है
हम मनोरंजन के आदी हैं
सदियों से हम हत्या का जश्न मनाते आ रहे हैं
हर हत्या के बाद बाढ़ आती है
बहने लगती हैं हमारी संवेदनाएं
कवि कविता लिखता है हत्या की निंदा में
एक्टिविस्ट कैंडिल मार्च का करते आयोजन
तभी पता चलता है
हत्यारे छूट गए हैं जमानत पर
और मंत्री महोदय माला पहनाकर उनका स्वागत करता है
अब सड़क पर उतरते हैं विपक्षी दल यह भूल कर
कि उनके शासन में जो हत्याएं हुई थी
उनका इंसाफ़ नहीं हुआ है अब तक
हत्या यूं ही नहीं होती
हत्या की जाती है
कभी जश्न के लिए
अक्सर राजनीति के लिए ।।।

No comments:

Post a Comment

युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....

. 1.   मैं युद्ध का  समर्थक नहीं हूं  लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी  और अन्याय के खिलाफ हो  युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो  जनांदोलन से...