Friday, February 19, 2010

भोर की कविता

यह भोर की कविता है
इसे लिखने के लिए
मैं रात भर जगता रहा , या फिर
शायद जागकर दिमाग में
इसे  सजाता रहा
अनुभव  गहरा था
अभिव्यक्ति कठिन
शव्दों में सजाना आसान न था .
नींद ने तो कब से बेवफाई कर ली आँखों से
अब वफ़ा शव्द से मेरा
नौ का आंकड़ा है
या फिर मैं यह कहूँ कि..
वफ़ा शव्द से ही
बेवफाई कर ली मैंने
मैं बेवफा हो गया  हूं .

आज मैं यह जो
 कविता लिख रहा हूं
यह एक लम्बी कहानी है
इसे समझ पाओगे  कि  नहीं
कह नहीं सकता
किउंकि यह भोर कि कविता है ......

3 comments:

  1. kya Baat hai Bhai ek ladki ki bewafai ne tume to kavi hi bana dala. Chalo achha hai,lage raho kafi aage jaoge.
    - Anand Patil@Google India-Banglore

    ReplyDelete
  2. इस कविता को लिखने के लिए दिमाक का कितना संतुलन बना के गहराई मे जाना पड़ता है...जैसे समुद्र मे तैरने से पहले आदमी को शारीरिक संतुलन बनाना पड़ता है...काफ़ी अच्छा संतुलन है...काफ़ी अच्छी कविता है...

    ReplyDelete

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...