जहर मिला मुझे
दवा के नाम पर
बेवफाई मिली मुझे
प्रीत के नाम पर
क्षीण हो गया है
जीवन का कोलाहल
जीवन अब बन चुका है
केवल एक हलाहल /
पिस रहा है जीवन
दिन प्रतिदिन
घुन की तरह
जल रहा है जीवन यहाँ
मई- जून की धूप की तरह
अनुभव पक रहा है
टांट पर बचे हुए
बाल की तरह /
Thursday, January 13, 2011
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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नमक तो नमक ही है नमक सागर में भी है और इंसानी देह में भी लेकिन, इंसानी देह और समंदर के नमक में फ़र्क होता है! और मैंने तुम्हारी देह का नमक...
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गाँधी ने पहनी नहीं कभी कोई टोपी फिर उनके नाम पर वे पहना रहे हैं टोपी छाप कर नोटों पर जता रहे अहसान जैसे आये थे बापू इस देश मे...
सरल शब्द है ...अछे भाव है ...शायद ये प्रश्न हम सभी को ..कचोटती है /
ReplyDeleteSunder !
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