Sunday, August 26, 2012

दो कवितायेँ


     १.मेरा एक पत्र तुम्हें

प्रिय मुंशी जी , 

आपका 'होरी' आज भी
यहीं रहता है| 

शरत बाबू का 

गफूर भी जी रहा है

ब्राह्मणों के उस गांव में 

उसी हालात में 
अमीना और महेश के साथ
बस महेश अब किसी के 

खेत में नही घुसता 

सड़कों पर घूमता है आवारा




नागार्जुन अब भी सुना रहे हैं हमें 

बलचनमा की कहानी .
.
और बाबा बटेसरनाथ 

खो चूका है, अपना धड़

टाटा, अंबानी या किसी जिंदल के हित की पूर्ति में 



आप में से किसी का पता नही है मेरे पास 

फिर भी भेज रहा हूँ ये पत्र 

यदि मिल जाये किसी दिन 

कुछ लिखना जबाव आप सभी 



मेरा पता वही है 

जो आपका था कभी .....







२.मुल्क तो मेरा भी मासूम 



मुल्क तो मेरा भी मासूम 
और तेरा भी 
वही जमीं , वही आसमान
वही पहाड़ ,नदियाँ , झरने 
परिंदे ,हवा , पानी
फिर कहाँ से उग आये 
साज़िस भरे दरिंदों की भीड़

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