यातनाओं के पैर नहीं होते
उसे इंसान ढोता है
कभी अकेले
कभी मिलकर
उसे इंसान ढोता है
कभी अकेले
कभी मिलकर
यह यातनाओं की
यात्रा का समय है
यात्रा का समय है
मुझे तुम्हारा साथ चाहिए
और तुम ..
कहीं गुम हो
और तुम ..
कहीं गुम हो
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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