कहीं कभी किसी दिन
हम दोनों मिल जाएं
जीवन के किसी राह पर
तब क्या हम
मिल पायेंगे
ठीक पहले की तरह ?
अक्सर मेरे मन में
यह सवाल उठता है
उस वक्त
शायद हम याद करेंगे
उस पल को
जब हम बिछड़े थे
एक - दुसरे से
मिलन से भी कठिन होगा
मिलन को यादगार बनाना
मन में उठे सवालों का
तब हम जवाब खोजेंगे
और
खोजेंगे कुछ शब्द
एक -दुजे को संबोधित करने के लिए
और सोचेंगे यह कि
कौन था जिम्मेदार
हमारे बिछड़ने का
ताकते रहेंगे एक -दुसरे का चेहरा
कुछ छ्णों तक
शर्म भरी आँखों से
देखेंगे
एक - दुसरे कि आँखों में
और शायद -
बनावटी खुशी की एक चादर
ओड़ने का प्रयास करेंगे
अपने चहरों पर
फिर से
एक औपचारिक मिलन बन जायेगा
यह मिलन
जैसे मिलते हैं -
दो अजनबी कभी - कभी
किसी सुनसान सड़क पर .
Monday, September 27, 2010
Wednesday, September 22, 2010
बह रहे हैं उन्मुक्त होकर
घर के सामने एक गड्ढा
गड्ढे में भरा है बारिश का पानी
उस जमे हुए पानी में
बच्चे बहा रहे हैं
कागज़ के नाव
नाविक रहित नाव
बह रहे हैं
उन्मुक्त होकर जमें हुए पानी में
हल्की ठंडी हवा के झोकों के साथ .
गड्ढे में भरा है बारिश का पानी
उस जमे हुए पानी में
बच्चे बहा रहे हैं
कागज़ के नाव
नाविक रहित नाव
बह रहे हैं
उन्मुक्त होकर जमें हुए पानी में
हल्की ठंडी हवा के झोकों के साथ .
बारिश की बूंदों को देखता रहा
झम झम गिरते
बारिश की बूंदों को देखता रहा
उनके कदम तालों को
मग्न होकर सुनता रहा
कभी रवि ठाकुर को
कभी बाबा की पंक्तियों को
याद करता रहा
"जल पड़े
पाता नड़े " या
धिन- धिन -धा"
वाह रे काली घटा
तान सेन ने ली होगी
कभी तुम्ही से संगीत की शिक्षा
हे बारिश के बूँद
हे मेघ दूत
तुम्ही से मिली थी शायद
कालीदास को प्रेरणा ..
बारिश की बूंदों को देखता रहा
उनके कदम तालों को
मग्न होकर सुनता रहा
कभी रवि ठाकुर को
कभी बाबा की पंक्तियों को
याद करता रहा
"जल पड़े
पाता नड़े " या
धिन- धिन -धा"
वाह रे काली घटा
तान सेन ने ली होगी
कभी तुम्ही से संगीत की शिक्षा
हे बारिश के बूँद
हे मेघ दूत
तुम्ही से मिली थी शायद
कालीदास को प्रेरणा ..
Thursday, September 16, 2010
मेरी ऐसी औकात कहाँ
मेरी ऐसी औकात कहाँ
कि मैं बनायुं मंदिर तुम्हारा
मुझमे ऐसी ताकत कहाँ कि
मैं तोडू मस्जिद तुम्हारा
मैं भक्त गरीब तुम्हारा
मैं बंदा फकीर तुम्हारा
अपना घर मैं अब तक बना न पाया
कैसे जलाऊँ बस्ती
भूख की आग पेट में जल रही
मैं कैसे करूं मस्ती ?
तुम्हारे मंदिर - मस्जिद
पर मैं कुछ कहूं
मेरी कहाँ है ऐसी हस्ती ?
छोड़ दिया है
यह काम उनपर
जिनके लिए है मानव जीवन सस्ती
जो आपने सोचा न था
कर रहे हैं बन्दे
इतनी मुझमें हिम्मत कहाँ
कि कह दूं इन्हें मैं गंदे
यदि कहीं है
अस्तित्व तुम्हारा
मेरे लिए समान है
कैसे तुमने यह होने दिया
जब तुम्हारे हाथों में कमान हैं ?
कबीर को अब कहाँ से लाऊं
रहीम को मैं कैसे बुलाऊँ
नानक को यह भूल गये हैं
साधु- मौलबी बन गए हैं
कैसे इन्हें मैं समझाऊँ ?
तुम्हारे और इनके बीच अब
बढ गए हैं फासले
इसीलिए
बढ गए हैं इनके नापाक हौसले .
कि मैं बनायुं मंदिर तुम्हारा
मुझमे ऐसी ताकत कहाँ कि
मैं तोडू मस्जिद तुम्हारा
मैं भक्त गरीब तुम्हारा
मैं बंदा फकीर तुम्हारा
अपना घर मैं अब तक बना न पाया
कैसे जलाऊँ बस्ती
भूख की आग पेट में जल रही
मैं कैसे करूं मस्ती ?
तुम्हारे मंदिर - मस्जिद
पर मैं कुछ कहूं
मेरी कहाँ है ऐसी हस्ती ?
छोड़ दिया है
यह काम उनपर
जिनके लिए है मानव जीवन सस्ती
जो आपने सोचा न था
कर रहे हैं बन्दे
इतनी मुझमें हिम्मत कहाँ
कि कह दूं इन्हें मैं गंदे
यदि कहीं है
अस्तित्व तुम्हारा
मेरे लिए समान है
कैसे तुमने यह होने दिया
जब तुम्हारे हाथों में कमान हैं ?
कबीर को अब कहाँ से लाऊं
रहीम को मैं कैसे बुलाऊँ
नानक को यह भूल गये हैं
साधु- मौलबी बन गए हैं
कैसे इन्हें मैं समझाऊँ ?
तुम्हारे और इनके बीच अब
बढ गए हैं फासले
इसीलिए
बढ गए हैं इनके नापाक हौसले .
Monday, September 13, 2010
तुम भी दूरी मापती होगी
हम दोनों की आखरी दिवाली पर
तुमने दिया था जो घड़ी मुझे
आज भी बंधता हूं उसे
मैं अपनी कलाई पर
घड़ी - घड़ी समय को देखने के लिए
उस घड़ी में
समय रुका नही कभी
एक पल के लिए
तुम्हारे जाने के बाद भी
निरंतर चलती रही
वह घड़ी
समय के साथ अपनी सुइओं को मिलाते हुए
घड़ी की सुइओं को देखकर
मैंने भी किया प्रयास कई बार
उस समय से बाहर निकलने की
जहाँ तुमने छोड़ा था मुझे अकेला
समय के साथ
किन्तु सिर्फ समय निकलता गया
और
मैं रुका ही रह गया
वहीँ पर
निकल न पाया
वहां से अब तक
जहाँ छोड़ा था तुमने
मुझे नही पता तुम्हारे घड़ी के बारे में
क्या वह भी चल रही है
तुम्हारे साथ
तुम्हारी तरह ?
कितनी दूर निकल गई हो
कभी देखा है
पीछे मुड़कर ?
जनता हूं
आगे निकलने की चाह रखने वाले
कभी मुड़कर नही देखते पीछे
पर मुझे लगता है
कभी -कभी अकेले में
तुम भी दूरी मापती होगी
हम दोनों के बीच की .
तुमने दिया था जो घड़ी मुझे
आज भी बंधता हूं उसे
मैं अपनी कलाई पर
घड़ी - घड़ी समय को देखने के लिए
उस घड़ी में
समय रुका नही कभी
एक पल के लिए
तुम्हारे जाने के बाद भी
निरंतर चलती रही
वह घड़ी
समय के साथ अपनी सुइओं को मिलाते हुए
घड़ी की सुइओं को देखकर
मैंने भी किया प्रयास कई बार
उस समय से बाहर निकलने की
जहाँ तुमने छोड़ा था मुझे अकेला
समय के साथ
किन्तु सिर्फ समय निकलता गया
और
मैं रुका ही रह गया
वहीँ पर
निकल न पाया
वहां से अब तक
जहाँ छोड़ा था तुमने
मुझे नही पता तुम्हारे घड़ी के बारे में
क्या वह भी चल रही है
तुम्हारे साथ
तुम्हारी तरह ?
कितनी दूर निकल गई हो
कभी देखा है
पीछे मुड़कर ?
जनता हूं
आगे निकलने की चाह रखने वाले
कभी मुड़कर नही देखते पीछे
पर मुझे लगता है
कभी -कभी अकेले में
तुम भी दूरी मापती होगी
हम दोनों के बीच की .
Tuesday, September 7, 2010
बदलाव के इस दौर में
समय के साथ
सब कुछ बदला है
आदमी भी
और उसका समाज भी
त्योहारों का स्वरुप भी
ईंट - पत्थरों के बढते
घने जंगल में
चमकती दुधिया रौशनी में
खो गई है चांदनी
तरसने लगी है
जमीं तक पहुँचने के लिए
सरकार के नोटिस पर
जुगनुओं ने छोड़ दिया है जंगल कबका
उद्योगपतियों के
विशेष आर्थिक ज़ोन के लिए
इस बदलाव के
अंधी दौर में
बाल मजदूरी करते - करते
खो गया है बचपन भी कहीं .
सब कुछ बदला है
आदमी भी
और उसका समाज भी
त्योहारों का स्वरुप भी
ईंट - पत्थरों के बढते
घने जंगल में
चमकती दुधिया रौशनी में
खो गई है चांदनी
तरसने लगी है
जमीं तक पहुँचने के लिए
सरकार के नोटिस पर
जुगनुओं ने छोड़ दिया है जंगल कबका
उद्योगपतियों के
विशेष आर्थिक ज़ोन के लिए
इस बदलाव के
अंधी दौर में
बाल मजदूरी करते - करते
खो गया है बचपन भी कहीं .
जनपदों पर अब
भारत के गलियों में
आजकल
त्रिलोचन नही दिखते
आजकल वे कवितायेँ नही लिखते
जनपदों पर अब
नागार्जुन नही दिखते
क्या इन महान कवियों ने
भांप लिया था समय को
समय से पहले ?
शायद उन्हें ज्ञात हो गया था
आने वाला कल
बस्ती की गली में जो चाय की दुकान थी
उसपर अब चाय नही मिलती
मिलती है
विदेशी शीतल पेय पदार्थ
महानगरों के भीड़ में
अब जनमानस नही दिखता
मुझे देहाती दिखते हैं
भारतीय नही दिखता
क्या मेरी नज़र खो गयी है ?
क्या जनपदों के कवि
सच में लुप्त हो गए हैं
या ----
लुप्त करने की एक साजिस में
उन्हें कैद कर दिया गया है
अलमारी के घुन लगी पुस्तकों में ?
आजकल
त्रिलोचन नही दिखते
आजकल वे कवितायेँ नही लिखते
जनपदों पर अब
नागार्जुन नही दिखते
क्या इन महान कवियों ने
भांप लिया था समय को
समय से पहले ?
शायद उन्हें ज्ञात हो गया था
आने वाला कल
बस्ती की गली में जो चाय की दुकान थी
उसपर अब चाय नही मिलती
मिलती है
विदेशी शीतल पेय पदार्थ
महानगरों के भीड़ में
अब जनमानस नही दिखता
मुझे देहाती दिखते हैं
भारतीय नही दिखता
क्या मेरी नज़र खो गयी है ?
क्या जनपदों के कवि
सच में लुप्त हो गए हैं
या ----
लुप्त करने की एक साजिस में
उन्हें कैद कर दिया गया है
अलमारी के घुन लगी पुस्तकों में ?
Sunday, September 5, 2010
क्रिकेट खेलना सीखो
देवता आये धरती पर
पूछा भारत के किसान से
क्या करते हो ?
जवाब दिया किसान ने - किसानी
देवता क्रोधित हो गए
श्राप दिया किसान को
जबतक जीएगा
इस देश में
दाने- दाने को तरसेगा
इस देश में
देवता कुछ विनम्र हुए
पूछा - क्या तुम्हे लगता है अंग्रेज यहाँ से चले गए ?
किसान हैरान था
देवता ने उत्तर दिया -
वे अब भी उपस्थित है -
तुम्हारी देश की हर व्यवस्था में
क्या तुम्हे कभी अहसास नही होता
तुम्हारे देश के नेतायों के व्यवहार से ?
अब देवता हैरान थे
देवता को तरस आया किसान पर
उन्होंने सलाह दिया किसान को
देखो -
तुम किसानी छोड़ो
क्रिकेट खेलना सीखो
आई .पी. एल. में जाने का प्रयास करो
अपने खेतों को मैदान बनाओ
प्रतिदिन अभ्यास करो
क्या पता कोई उद्योगपति या सिनेसितारा
तुम्हे भी भाड़े पर उठा लें
अपनी टीम के लिए
कहकर देवता चले गये
किसान नींद से जाग उठा
उसका सपना टूट गया
खेत की ओर भागने लगा .
पूछा भारत के किसान से
क्या करते हो ?
जवाब दिया किसान ने - किसानी
देवता क्रोधित हो गए
श्राप दिया किसान को
जबतक जीएगा
इस देश में
दाने- दाने को तरसेगा
इस देश में
देवता कुछ विनम्र हुए
पूछा - क्या तुम्हे लगता है अंग्रेज यहाँ से चले गए ?
किसान हैरान था
देवता ने उत्तर दिया -
वे अब भी उपस्थित है -
तुम्हारी देश की हर व्यवस्था में
क्या तुम्हे कभी अहसास नही होता
तुम्हारे देश के नेतायों के व्यवहार से ?
अब देवता हैरान थे
देवता को तरस आया किसान पर
उन्होंने सलाह दिया किसान को
देखो -
तुम किसानी छोड़ो
क्रिकेट खेलना सीखो
आई .पी. एल. में जाने का प्रयास करो
अपने खेतों को मैदान बनाओ
प्रतिदिन अभ्यास करो
क्या पता कोई उद्योगपति या सिनेसितारा
तुम्हे भी भाड़े पर उठा लें
अपनी टीम के लिए
कहकर देवता चले गये
किसान नींद से जाग उठा
उसका सपना टूट गया
खेत की ओर भागने लगा .
तुम जलाओ बैंगन
उनका भत्ता बढ गया है
तुम जलाओ बैंगन
काम तुम्हारा करते हैं
संसद में ये लोग लड़ते हैं
माइक,जूता - चप्पल एक -दुसरे पर फेंकते हैं
हवाई सर्वेक्षण करते हैं
और क्या तुम चाहते हो
तुम तो केवल पत्थर तोड़ते हो
ठेला चलाते और बोझा ढोते हो
हमेशा महंगाई का रोना रोते हो
उनके बारे में कभी सोचते हो ?
हवाला कांड
चारा कांड
कफ़न कांड , बोफोर्स कांड
हत्याकांड , दंगा कांड
और न जाने-
क्या -क्या महाकांड
कितनी बखूबी करते हैं
सी . बी . आई . वाले भी
इनसे डरते हैं
इन्ही का कहा मानते हैं
अरे नादाँ गरीब जनता
क्या तुम्हे नही पता
ये वही लोग हैं जो -
दिल्ली में रहते हैं
पटना में रहते हैं
पुरे देश में रहते हैं
खूब मस्ती करते हैं
"मेरा पोता करेगा राज"
बाबा नागार्जुन की यह कविता रोज पढते हैं
नोट के बदले वोट देते हैं
स्टिंग आपरेशन में पकड़े गए तो
पत्रकार को खरीदते हैं .
जरा सोचो -
वे भी गरीब हैं
तभी सरकार इन्हें सबकुछ
मुफ्त में देती है
इस महंगाई में भी
इनके बच्चे बिदेशों में पढते हैं
इस महंगाई का तो
उनपर भी है बोझ
तुमने उन्हें क्या दिया
मतदान केंद्र में जाकर सिर्फ एक बटन दबाया
तुम तो काम वाले हो
वे तो बेरोजगार हैं
काम के चक्कर में बिचारे
दिल्ली के जनपथ पर घुमते हैं मारा - मारा
इनसे बड़ा कौन बेचारा ?
तुम जनता समझते नही
किउन उन्हें परेशान करते हो
कम से कम चुनाव तो आने दो .
तुम जलाओ बैंगन
काम तुम्हारा करते हैं
संसद में ये लोग लड़ते हैं
माइक,जूता - चप्पल एक -दुसरे पर फेंकते हैं
हवाई सर्वेक्षण करते हैं
और क्या तुम चाहते हो
तुम तो केवल पत्थर तोड़ते हो
ठेला चलाते और बोझा ढोते हो
हमेशा महंगाई का रोना रोते हो
उनके बारे में कभी सोचते हो ?
हवाला कांड
चारा कांड
कफ़न कांड , बोफोर्स कांड
हत्याकांड , दंगा कांड
और न जाने-
क्या -क्या महाकांड
कितनी बखूबी करते हैं
सी . बी . आई . वाले भी
इनसे डरते हैं
इन्ही का कहा मानते हैं
अरे नादाँ गरीब जनता
क्या तुम्हे नही पता
ये वही लोग हैं जो -
दिल्ली में रहते हैं
पटना में रहते हैं
पुरे देश में रहते हैं
खूब मस्ती करते हैं
"मेरा पोता करेगा राज"
बाबा नागार्जुन की यह कविता रोज पढते हैं
नोट के बदले वोट देते हैं
स्टिंग आपरेशन में पकड़े गए तो
पत्रकार को खरीदते हैं .
जरा सोचो -
वे भी गरीब हैं
तभी सरकार इन्हें सबकुछ
मुफ्त में देती है
इस महंगाई में भी
इनके बच्चे बिदेशों में पढते हैं
इस महंगाई का तो
उनपर भी है बोझ
तुमने उन्हें क्या दिया
मतदान केंद्र में जाकर सिर्फ एक बटन दबाया
तुम तो काम वाले हो
वे तो बेरोजगार हैं
काम के चक्कर में बिचारे
दिल्ली के जनपथ पर घुमते हैं मारा - मारा
इनसे बड़ा कौन बेचारा ?
तुम जनता समझते नही
किउन उन्हें परेशान करते हो
कम से कम चुनाव तो आने दो .
Thursday, September 2, 2010
एक नन्हा बालक
एक नन्हा बालक
मिच- मिच कर हँसता है
मुझे देखकर छुपता है
फिर निकल आता है
और ठहाका लगता है
और उसे देखना
मुझे अच्छा लगता है .
उसके माता - पिता जब
उसे डांटते-
उदास चेहरा बना लेता है
मेरे पंहुचने पर मुझसे लिपट जाता है
उसका चेहरा देख
मेरा मन उदास हो जाता है
उसे हँसते देख मुझमें
नई ऊर्जा का सृजन होता है .
मिच- मिच कर हँसता है
मुझे देखकर छुपता है
फिर निकल आता है
और ठहाका लगता है
और उसे देखना
मुझे अच्छा लगता है .
उसके माता - पिता जब
उसे डांटते-
उदास चेहरा बना लेता है
मेरे पंहुचने पर मुझसे लिपट जाता है
उसका चेहरा देख
मेरा मन उदास हो जाता है
उसे हँसते देख मुझमें
नई ऊर्जा का सृजन होता है .
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
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