Monday, September 13, 2010

तुम भी दूरी मापती होगी

हम दोनों की आखरी दिवाली पर
तुमने दिया था जो घड़ी मुझे
आज भी बंधता हूं उसे
मैं अपनी कलाई पर
घड़ी - घड़ी  समय को देखने के लिए

उस घड़ी में
समय रुका नही कभी
एक पल के लिए
तुम्हारे जाने के बाद भी
निरंतर चलती रही
वह घड़ी
समय के साथ अपनी सुइओं को मिलाते हुए
घड़ी की सुइओं को देखकर
मैंने भी किया प्रयास कई बार
उस समय से बाहर निकलने की
जहाँ तुमने छोड़ा था मुझे  अकेला
समय के साथ
किन्तु सिर्फ समय निकलता गया
और
मैं रुका ही रह गया
वहीँ पर
निकल न पाया
वहां से अब तक
जहाँ छोड़ा था तुमने
मुझे नही पता तुम्हारे घड़ी के बारे में
क्या वह भी चल रही है
तुम्हारे साथ
तुम्हारी तरह ?
कितनी दूर निकल गई हो
कभी देखा है
पीछे मुड़कर ?
जनता हूं
आगे निकलने की  चाह रखने वाले
कभी मुड़कर नही देखते पीछे
पर मुझे लगता है
कभी -कभी अकेले में
तुम भी दूरी मापती होगी
हम दोनों के बीच की .

8 comments:

  1. Nityanand ke dard bhare nagme...solid hai bhai,,,,

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  2. दूर निकल जाने के बाद पीछे मुड कर देखते कई बार यह ख़याल आता होगा ...रुके हुए समय को ...
    अच्छी लगी कविता !

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  3. समय आगे चलता है। आप भी आगे चलते हैं। कोई किसी के लिए न तो रुकता है, और न रुक सकता है। चलना इस संसार की नियती है और मनुष्य होने के नाते हमे भी चनना होता है। ठहरना केवल एक भ्रम है और यही दुःख का कारण भी है। अच्छा किया कि, कविता ने मांसिक घड़ी तोड़ दी अच्छा हो कि, यह सुंदर कविता ही रहे किसी का सच न हो। हिंदी दिवस की पुर्व संध्या पर यह छायावाद के छाया वाली कविता जिसमें एक यंत्र का मानवीकरण है अच्छा प्रयास है। ...डॉ अभिचित् जोषी हैतेराबाद विश्व विद्यालय

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  4. समय ...
    हाहाहा ...
    मैं मरता नहीं
    अमर हूँ मैं //
    मेरी तरह चलोगे तुम ?

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  5. वाह...समय पर लिखी अभी तक की यूनिक कविता....

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  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...