Thursday, September 2, 2010

एक नन्हा बालक

एक नन्हा बालक

मिच- मिच कर हँसता है
मुझे देखकर छुपता है
फिर निकल आता है
और ठहाका लगता है
और उसे देखना
 मुझे अच्छा लगता है .

उसके माता - पिता जब
 उसे डांटते-
 उदास चेहरा बना लेता है
मेरे पंहुचने पर मुझसे लिपट जाता है
उसका चेहरा देख
मेरा मन उदास हो जाता है
उसे हँसते देख मुझमें 
नई ऊर्जा का सृजन होता है .

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  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...