एक नन्हा बालक
मिच- मिच कर हँसता है
मुझे देखकर छुपता है
फिर निकल आता है
और ठहाका लगता है
और उसे देखना
मुझे अच्छा लगता है .
उसके माता - पिता जब
उसे डांटते-
उदास चेहरा बना लेता है
मेरे पंहुचने पर मुझसे लिपट जाता है
उसका चेहरा देख
मेरा मन उदास हो जाता है
उसे हँसते देख मुझमें
नई ऊर्जा का सृजन होता है .
Thursday, September 2, 2010
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युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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गाँधी ने पहनी नहीं कभी कोई टोपी फिर उनके नाम पर वे पहना रहे हैं टोपी छाप कर नोटों पर जता रहे अहसान जैसे आये थे बापू इस देश मे...
bachhe hi achhe thee :)
ReplyDeleteaisa lagta hai jaise main khud ko dhekh raha hoon .............
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