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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
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एक नदी जो निरंतर बहती है हम सबके भीतर कहीं वह नदी जिसने देखा नही कभी कोई सूखा वह नही जिसे प्यास नही लगी कभी मैं मिला हूँ उस ...
नित्यानंद जी
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने -हमने धीरे -धीरे आदत बना ली है अन्याय सहने की ....सत्य को नकारने की ..
ज्ञानवर्धक पंक्तियाँ . ..
bahut khub...karara vyang, teekhi sachchai....
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