किसी को नहीं दिखता
Sunday, December 13, 2020
मैं तो अपने लोगों के साथ सिंघु बॉर्डर पर हूँ
Friday, December 4, 2020
उसने बूढ़े किसानों को देश के 'जवानों' से लड़ा दिया है
अपनी जमीन और देश को भुखमरी से
Comments
Monday, November 23, 2020
उम्मीद और वादों से अब डर लगता है
कविताएं मरती नहीं कभी
Friday, October 30, 2020
मेरी कविताएँ सहम कर कहीं छिप गयी हैं
महामारी ने क्या-क्या संक्रमित किया
Wednesday, September 16, 2020
राजा से हर मौत का हिसाब लेना चाहिए
नये भारत की सरकार
मारे गए नागरिकों की गिनती नहीं करती
मने किसी सरकारी खाते और डेटाबेस में
कोई रिकार्ड नहीं रखती
दरअसल आसान भाषा में समझ लीजिए
कि सरकार अब लाशों की गिनती नहीं करती
सरकार तो अब जीते हुए लोगों को
लाश बनाकर छोड़ देती है
राजा का सिंहासन जब लाशों की ढेर पर रखा हो
तब लाशों की गिनती भी अपराध माना जा सकता है
राजा इसे 'एक्ट ऑफ गॉड' यानी ईश्वरीय कृत
या लीला भी करार देकर बरी हो सकता है
राजा आखिर राजा होता है
वह कुछ भी कर सकता है
राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि कहा जाता है
ईश्वर द्वारा किये गए हत्याओं को किसी अपराध
या पाप की श्रेणी में नहीं गिना जाता
जो मरा वही पापी हो जाता है !
मजदूर, किसान, बेरोजगार को
राजा अब नागरिक नहीं मानता
वह सवाल पूछने वालों, काम मांगने वालों
और भूख में खाना मांगने वालों को देशद्रोही कहता है
राजा उनकी हत्या का आदेश नहीं देता
सिर्फ बेघर कर देता है
सड़क पर ला देता है
उनकी झुग्गियों को उजाड़ने का आदेश जारी करवाता है
राजा अस्पताल की ऑक्सिजन सप्लाई बंद करवा देता है
प्रजा राजा की भक्ति और राष्ट्रवाद की भावना के बोझ से
खुद को मुक्त नहीं कर पाती
किसान फांसी लगा लेता है
बेरोजगार युवा ज़हर पी लेता है
रोटियों के साथ रेल से कटकर मर जाता है
मजदूर का परिवार
और इस तरह मरते हुए वह
राजा को हत्या के आरोप से बचा लेता है
जबकि मैं सोचता हूँ इसके विपरीत
असामयिक हुई हर मौत के लिए
राजा ही दोषी है
भूख से मरे हर नागरिक का क़ातिल है राजा
क्योंकि भूख से मरना भूकम्प से मरना नहीं है
किसान आत्महत्या दरअसल हत्या है राज्य द्वारा
ऐसी तमाम मौतों के लिए केवल राजा को ही
दोषी माना जाना चाहिए !
उससे एक -एक मौत का हिसाब लेना चाहिए ।।
Thursday, September 10, 2020
चुप्पी की भी सीमा तय हों
सत्ता
लाशों पर
नक़्क़ाशी करवाती है
सम्राट का महल
जब कभी ढहा दिया जाएगा
मलबे में
इंसानी हड्डियां भी निकलेगी
राजा एक दिन में निरंकुश नहीं हुआ है
प्रजा की ख़ामोशी ने
उसे उकसाया है !
घर गायब होते हुए
बात बस्ती तक पहुंच चुकी है
ज़मीन पहले ही छीन चुकी है
अब आसमान की बारी है
चुप्पी की भी सीमा तय हों
पानी का रंग बदलने लगा है देखिए
कहीं ये हमारा लहू तो नहीं है ?
Thursday, September 3, 2020
हमारी चुप्पी को वह स्वीकृति मान रहा है
प्रतिरोध में खड़ा होना है
या अवसाद में ही मर जाना है
यह निर्णय का वक्त है
हमारी चुप्पी को
वह स्वीकृति मान रहा है
वह खेल रहा है
तोड़ रहा है हमारे सपनों को
वह ज़हर घोल रहा है
हमारे बच्चों के भविष्य में
और ऐसा होने नहीं दिया जाना चाहिए
उसे बतलाना होगा
हम टूटे हुए नहीं हैं
हम आयेंगे मिल कर उसके किले को ढहाने के लिए
हम ही बचायेंगे अपने देश को
ढहने से पहले ....
Tuesday, September 1, 2020
हम आधुनिक युग के सभ्य शिकारी हैं
हमारी जीभ को मिल गया है
इंसानी लहू का स्वाद
अब हम सब लहू से बुझाना चाहते हैं
अपनी प्यास
हम सब आदमखोर हो चुके हैं
हम आधुनिक युग के
सभ्य शिकारी हैं
क्या हुआ जो पैने नहीं हैं
हमारे दांत
हम अपनी भाषा से कर सकते हैं
घायल और क़त्ल भी
इस युग का यही सबसे घातक हथियार है
हम आधुनिक युग के
सभ्य शिकारी हैं
हम माहिर हो चुके हैं
भावनाओं का जाल बिछा कर
शिकार करने की कला में
हम संवेदनाओं का मुरब्बा बना कर
खाने लगे हैं
हम आधुनिक युग के
सभ्य शिकारी हैं |
तुम सुबह के इंतज़ार में रहो
इस उम्मीद में
कि कोई आएगा मदद को
हम रातों को काली और लम्बी कर देंगे
हम आधुनिक युग के
सभ्य शिकारी हैं
सब हमें इन्सान समझते हैं !
Tuesday, August 25, 2020
मैं शर्मिंदा हूँ
आप जो ख़ामोश हैं
सोच कर कि सिर्फ एक औरत को नंगा कर दौड़ाया !उस औरत में मेरी माँ थी
थी मेरी बहन
और मेरी प्रेमिका थी
आप देखते रहें
मजे लेते रहें नग्न बदन देख कर
मुझसे आँख मिलाकर बात कर सकते हो तुम
भद्र मानुष ?
थू है तुम पर
मैं शर्मिंदा हूँ कि
मैं तुम्हारे युग में जी रहा हूँ
तुम्हारे साथ
चन्द्रयान ने चाँद की सतह की पहली तस्वीर भेजी है
चन्द्रयान ने चाँद की सतह की
पहली तस्वीर भेजी है
धरती पर गटर साफ करने उतरे
5 मजदूरों ने दम तोड़ दिया है
लोग चाँद की सतह की तस्वीर देख कर आनंदित और उत्साहित हैं
धरती के स्वर्ग में सन्नाटा है
नौकरी से निकाले गये युवक ने
जहर खाकर आत्महत्या कर ली है
उधर हत्या के आरोपी जेल से छुटे हैं
जय श्री राम के नारों के साथ उनका स्वागत हो रहा है
राष्ट्र नायक नये-नये परिधानों में ट्विटर पर मुस्कुराते दिखाई दे रहे हैं
मंदिरों को भव्य रूप में सजाया गया है
बाहर कुछ बच्चे भोजन के लिए भीख मांग रहे हैं
पत्रकारों की संस्था ने सत्ता का दामन थाम लिया है
राष्ट्रहित ही सर्वोपरी है
धार्मिक पहचान
अब नागरिकता का आधार बन चुकी है
जल, जंगल, जमीन की लड़ाई में शामिल लोग
अपराधी घोषित हो चुके हैं
भूख, बेरोजगारी, शिक्षा, शोषण, आदि के सवाल राष्ट्र का अपमान है
आओ, चंद्रयान की यात्रा करें हम !
रचनाकाल : 26 अगस्त 2019
Thursday, August 13, 2020
वे लोग
वे लोग
जो, अपने भगवान और खुदा के अपमान पर
निकल पड़ते हैं बदला लेने के लिए
उनको कभी देखा नहीं
किसी भूखे को रोटी खिलाते हुए
किसी बीमार की सेवा करते हुए
इनके भगवान और गॉड
इनसे कितने खुश होते होंगे पता नहीं
जर्दानो ब्रूनो को चर्च ने
अफवाह फैलाने का आरोप लगाकर जिन्दा जला दिया था
जबकि वह गणितज्ञ एवं खगोलवेत्ता था
निकोलस कोपरनिकस ने कहा था - 'ब्रह्माण्ड का केंद्र पृथ्वी नहीं, सूर्य है।'
ब्रूनो ने निकोलस कोपरनिकस के विचारों का समर्थन करते हुए कहा - 'आकाश सिर्फ उतना नहीं है, जितना हमें दिखाई देता है,
वह अनंत है और उसमें असंख्य विश्व है।'
चर्च डर गया
रोम में भरे चौराहे पर ब्रूनो को जला दिया गया !
खगोल वैज्ञानिक गैलीलियो जो "ल्यूट" नामक वाद्य यंत्र बजाते थे
उन्होंने दूरबीन का अविष्कार किया
और कॉपरनिकस के सिद्धान्त का समर्थन किया
ईश्वरीय मान्यताओं से छेडछाड करने के आरोप में उन्हें कारावास मिला
जबकि हमें किसी भी ईश्वर की शिक्षा के बारे में कोई जानकारी नहीं है
उनके विश्वविद्यालयों की भी कोई जानकारी किसी दस्तावेज़ में
मौजूद नहीं है
फिर भी उनके आदेशों का पालन करने के लिए कहा जाता है बार-बार
अब जो भक्त मंदिर-मस्जिद और अपने ईश्वरों के अपमान की लड़ाई में
उन्माद हैं
उनसे पूछिये कोई सवाल तो
खड़ा हो जाता है बवाल
सुकरात को भी पीना पड़ा ज़हर
उसके प्याले में हमारे हिस्से का ज़हर भी शामिल था
मैंने नीलकंठ वाली कहानी बाद में सुनी है
गोविंद पानसरे भी शहीद हो गये
अंधेरे से हमें बचाने के लिए
ऐसे सैकड़ों शहीदों के बलिदान के बाद भी
युवक उतर आते हैं सड़कों पर
किसी दंगे के लिए
जला देते हैं पूरी की पूरी बस्ती
कौन खुदा और ईश्वर उन्हें ऐसा आदेश देता है ?
जबकि कोई भी ईश्वर रोक नहीं पाया
भूख और बीमारी से मरते लोगों को
नहीं रोक सका कोई भूकंप और सुनामी को
न ही किसी महामारी को ....!!
Tuesday, August 11, 2020
इस नये इतिहास में हमारा स्थान कहाँ होगा
हक़ीकत की जमीन से कट कर
हमने आभासी दुनिया में बसेरा बना लिया है
हवा में दुर्गंध फैलता जा रहा है
हमने सांसों का सौदा कर लिया है
जमीन धस रही है
और हम आसमान में उड़ना चाहते हैं
पर वो आसमान कहाँ है
जहाँ पंख फैला कर कोई परिंदा भी अब आज़ादी से उड़ सके !
हम अपनी भाषा से दूर हो गये हैं
हमने 'एप्प' नामक मास्टर से नई भाषा सीख ली है
यह भाषा जो हमारी पहचान को मिटाने में सक्षम है
आजकल हम उसी में बात करते हैं
देश की सत्ता आज़ादी का पर्व मनाने को बेचैन है
ऐसे समय में नागरिक खोज रहा है
अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार
हम बाहर की दुनिया से इस कदर कट गये हैं कि
न धूप की खबर है न ही पता है कि चांदनी कब फैली थी आखिरी बार
दूरभाष यंत्र 'फोन' से आदेश पर नमक तक घर पहुँच जाता है
हम पानी का स्वाद भूलने लगे हैं
कहने सुनने के तमाम आधुनिक उपकरणों के इस युग में
हम भूल गये हैं कि
हम कहना क्या चाहते हैं
हम संविधान के पन्ने पलट रहे हैं
गैजस्ट्स को देशी भाषा में क्या कहते हैं
मुझे नहीं पता
आपको पता हो शायद
झारखण्ड की सुदूर पहाड़ी पर बसे आदिवासियों को
नहीं मिल रहा है सरकारी राशन
हमें न इसकी खबर है न ही परवाह
हम पोस्ट करते जा रहे हैं अपनी पसंद की बातें
रंग-बिरंगी पटल पर जिन्हें खूब सराहा जा रहा है
हम 'लाइक' और टिप्पणियों (कमेंट्स ) की गिनती कर रहे हैं
एक तरफ़ा मन की बात के इस दौर में
दूसरों की आवाज़ हमारे कानों तक नहीं पहुँच पाती
हमारा जीवन-मृत्यु एक नम्बर पर निर्भर हो गया है
उसे ही जीवन का आधार कहा गया है !
घाटी -घाटी का इतिहास बदल रहा है
नये इतिहास गढ़े जा रहे हैं
इस नये इतिहास में हमारा स्थान कहाँ होगा
किसी को पता है क्या ?
11.08.2017
Wednesday, August 5, 2020
राजघाट की समाधि पर आज बापू क्यों हैं खफ़ा !
कुछ और रंग भी उतरेंगे
आगे-आगे देखिये
कुछ और मुखौटे खुलेंगे
कुछ भूखे मारे जायेंगे
दंगों की पीड़ा से कल तक जो दीखते थे आहत
सुने कि आज दीये जलाएंगे !
विपक्ष खुश है
इस वक्त दोनों जार्ज बुश है
मेरे दिमाग में भरा भूस है
जनता तो लेमनचूस है
चुन्नू खुश है
मुन्नू खुश है
खुश है मम्मी -पप्पा
सियार गान में शामिल हो गये सब
भूलकर अपना आपा
राजघाट की समाधि पर आज बापू क्यों हैं खफ़ा !
Sunday, July 19, 2020
भेड़िया अब दो पैरों पर चल सकता है
सुरक्षित हो जाने के भ्रम में
अंधेरे बिलों में छिप कर
राहत की सांस ले रहे हैं
हंस रहा है
इसकी ख़बर नहीं है उन्हें
दे सकता है सत्संग शिविर में प्रवचन
सुना सकता है बच्चों को कहानी
शिकार को जाल में फंसाने के लिए
कुछ भी कर सकता है वो
खुर पहनकर छिपा कर चलता है
मुखिया बन चुका है
आप भी जानते हैं कि अब वह गुफा के भीतर
कब और क्यों जाता है
कि जंगल में आग लग चुकी है
और आदमखोर भेड़िया अपने साथियों के साथ
मानव बस्तियों की तरफ बढ़ रहा है
अफ़सोस , कि लोग मुझे
आसमान गिरा , आसमान गिरा कहने वाला
खरगोश समझ रहे हैं !
रचनाकाल : , 19 जुलाई 2019
Thursday, July 16, 2020
नार्थ -ईस्ट
और कितने जुड़े हुए हैं
पूर्वोत्तर के लोगों से , उनके दर्द, तकलीफ़
जीवन-संघर्ष से
और कितना जानते हैं उनकी ज़रूरतों के बारे ?
जब कभी फोन से पूछता हूँ वहां किसी मित्र से हाल
और कहता हूँ
-आप लोगों की ख़बर नहीं मिलती
तब हमेशा सुनने को मिलता है एक ही बात -
यहां से भारत बहुत दूर है !
कुछ ज़रूरत भर अपने लेखन और भाषण में
करते हैं उनका जिक्र
ब्रह्मपुत्र जब बेकाबू होकर डूबो देता है वहां जीवन
बहा ले जाता है सब कुछ
हम कांजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में मरे हुए जानवरों की तस्वीरें साझा करते हैं
हमारी संवेदनाएं तैरने लगती है
सोशल मीडिया की पटल पर
हमने दिल्ली में अपमानित होते देख अपनी आवाज़ उठाई है ?
जब कोई हमारी गली में उन्हें
चीनी, नेपाली, चिंकी, छिपकली
और अब कोरोना कह कर अपमानित करता है
हमने कब उसका प्रतिवाद किया है
कब हमने जुलूस निकाला है उनके अपमान के खिलाफ़
याद हो तो बता दीजिए
और चेरापूंजी की वर्षा के लिए याद किया अक्सर
अरुणाचल के सूर्योदय के लिए याद किया
हमने कामाख्या मंदिर और ब्रह्मपुत्र के लिए अपनी स्मृति में सजा रखा है
पर हम उनकी तकलीफ़ों में शामिल होने से बचते रहे हैं हमेशा
हमने वहां के लोगों की अधिकार की बात नहीं की है
राजनेताओं का चरित्र तो वहां भी दिल्ली जैसा ही है
और बाकी जो आवाज़ उठाता है अलग होकर
वह कैद कर लिया जाता है
'दिल को बहला लिया , तूने आस -निराश का खेल किया'
समय अपनी रफ़्तार से चल रहा है
बाढ़ में फिर डूब गया है असम
मेरे दोस्त अब भी कहते हैं - यहां से बहुत दूर है भारत !
वे ऐसा क्यों कहते हैं !!
Tuesday, July 14, 2020
उदासी में ही मैं लिख सकूंगा प्रेम की सबसे मुकम्मल कविता
मैंने कहा था तुमसे
मेरा उदास होना
दरअसल अपनी उदासी में ही मैं
खुद में होता हूँ पूरी तरह
जब भर आती हैं मेरी आँखें और धुंधली पड़ती हैं
वहमी रिश्ते -नातों की तस्वीरें
मैं केवल सोचता हूँ अपने बारे में
तुम्हारी ही किसी बात पर
क्योंकि मेरी ख़ामोशी पर तुम बार- बार पूछती
कि 'मैं क्यों हूँ उदास' ?
मैं परेशान होता हूँ तुम्हारे इस सवाल से
न पूछो कभी मुझसे मेरी उदासी का राज
बस जब मैं खामोश रहूँ लम्बे समय तक
तुम समझ लेना कि मैं खुद के साथ हूँ
मतलब मैं सोच रहा हूँ तुम्हें
और सोचता हूँ एक प्रेम कविता पर
जिसे मैं लिख सकूं तुम्हारे लिए
और मुझे लगता है कि
अपनी उदासी में ही मैं लिख सकूंगा
प्रेम की सबसे मुकम्मल कविता
तुम्हारे लिए..!!
Thursday, July 9, 2020
अंधकार का साम्राज्य विस्तार ले रहा है
या सुबह देर से आने लगी है
इनदिनों
या अंधेरा और सन्नाटे ने
अड्डा जमा लिया है भीतर !
चीत्कार
बदबूदार हवा
लावारिस शवों के बीच
चली रही है सांसे
सोच भी संक्रमित हो रही है
भरोसा भी अब धोखा देने लगा है
रात की उम्र बढ़ गयी है
अंधकार का साम्राज्य विस्तार ले रहा है
भीतर ही भीतर !
Tuesday, July 7, 2020
हम लाशों की तसवीर उतारने लगे हैं
हत्यारे को रोक नहीं पाते हत्या करने से
इसलिए हत्या के बाद
हम लाशों की तसवीर उतारने लगे हैं
और हत्या का करते हैं लाइव !
रोता रहा
गिड़गिड़ाते हुए मांगता रहा मदद उम्मीद की नज़रों से
हमारी सुनने की शक्ति ख़त्म हो चुकी है
हम मनोरंजन के आदी हैं
सदियों से हम हत्या का जश्न मनाते आ रहे हैं
बहने लगती हैं हमारी संवेदनाएं
कवि कविता लिखता है हत्या की निंदा में
एक्टिविस्ट कैंडिल मार्च का करते आयोजन
तभी पता चलता है
हत्यारे छूट गए हैं जमानत पर
और मंत्री महोदय माला पहनाकर उनका स्वागत करता है
कि उनके शासन में जो हत्याएं हुई थी
उनका इंसाफ़ नहीं हुआ है अब तक
हत्या की जाती है
कभी जश्न के लिए
अक्सर राजनीति के लिए ।।।
Monday, July 6, 2020
हम भी शामिल रहें उनके तमाम अपराधों में
घर बनाने की बात कर रहे थे
सभ्यता का स्थानान्तरण करना चाहते थे
इसी लालच में ग्रह मंगल की खोज में लग गये
जबकि अब तक जिस पृथ्वी पर बसे हुए हैं
उसे बचाने के लिए कुछ नहीं किया
विकास के नाम पर विनाश के हथियार बनाए
हवा में ज़हर मिलाया
और पानी में इंसानी खून
संवेदनाओं का क़त्ल किया
उन्होंने धर्म का दुरुपोयोग किया
उन्होंने अपने ईश्वर तक को धोखा दिया
मंदिर-मस्ज़िद के बहाने लोगों को लड़वा दिया
भगवान के नाम पर उन्होंने बस्तियां जला दी
कई नगर उड़ा दिए
विश्वास के नाम पर धोखा दिया
जंगल काट दिए
पहाड़ तोड़ दिया
नदी सूखा दिए
उन्होंने करोड़ों लोगों को भूखा मार दिया
बच्चों की सांसे रोक दी
इस तरह हर हत्या को जायज़ बनाने के लिए
कोई न कोई बहाना खोज लिया
उन्होंने इंसानों को गुलाम बनाया
और उसे व्यापार कहा
हम ख़ामोशी से देखते रहे
सहते रहे सब कुछ
Wednesday, June 24, 2020
चेहरों ने अभिव्यक्ति की भाषा खो दी है
सब ठीक होगा
उम्मीद की इस दवा की
वैधता कितनी बची है अब
सुबह का इंतज़ार रहता इनदिनों
सपनों ने आत्महत्या कर ली है
मेरी भाषा भी अब
संक्रमित हो चुकी है
सभ्यता की उम्मीद बेकार है
उन्हें देख कर हंस लेना भी अब छल लगता है
भोजन की खुशबू से पेट नहीं भरता
और मजदूर जीना चाहता है
इस चाहत पर भी दिक्कत है उनको
इस चाहत को भी तो लालच कहा है आपने
आपकी बातों से
उसकी भूख नहीं मिटती
मौत भारी है जीवन पर
चेहरों ने अभिव्यक्ति की भाषा खो दी है
आँखों में झांक कर देखा है कभी आपने ?
आँखों की भाषा सबको नहीं आती है
Friday, June 12, 2020
चींटियाँ कतार बना कर चल रही हैं बिना किसी आपसी टकराव के
कि भुखमरी, शोषण, हत्या आदि के खिलाफ
जिन्हें लड़ना था मिलकर
वे आपस में लड़ने लगे हैं
वैश्विक संक्रमण के इस दौर में
यह फासीवादी सत्ता की जीत है
उस वक्त वे एक-दूसरे की कमियां गिना रहे हैं !
सोचकर देखिएगा-
कहीं हम फासीवाद के जाल में तो नहीं फंस गये हैं
बांटो और राज करो की नीति का शिकार तो नहीं बन गये हैं !
किंतु पहले दुश्मन की पहचान ज़रूरी है
विभाजनकारी ताकतों की शिनाख्त ज़रूरी है
मित्र बनकर भीतर बैठा शत्रु सबसे घातक होता है
एक भी गलत निशाना विनाश ला सकता है
पूरे शरीर को नीला पड़ने से पहले
इस ज़हर को फैलने से रोकना होगा
नफ़रत का संक्रमण सबसे पहले
इंसानियत को मार देता है
अब, जब उड़ चुकी है रातों की नींद हमारी
तो सपनों की बात फ़ुज़ूल है
कितना ज़हर भर चुका है हमारे भीतर
यह जांचने का वक्त है
और वे विलुप्त होते चले गये शर्म से
इस तरह हम बेशर्म हो गये
बिना किसी आपसी टकराव के !!
Tuesday, June 9, 2020
भूख से मेरे लोगों की सूची कहीं देखी है आपने
उनकी बनावटी संवेदनशीलता की बाहरी परत
अब उतर चुकी है
और लोगों की मौत पर
सवाल मत पूछिए
वे नाराज़ हो जाएंगे
सड़क पर मरते मजदूरों के बारे में
कहा था उनसे-
आपकी बातों से पेट तो नहीं भरेगा !
उन्होंने मुझे बाहर धकेल दिया
कमरा खाली कर चली गयी दो दिन पहले
फ्लैट्स वाले बाबुओं ने उससे
अपने घरों में काम कराने से मना कर दिया
गांव जाकर ख़ुदकुशी कर ली
वो मुझे भी कवि कहता था
मैंने उसे कविता नहीं सुनाई
एक दिन कुछ पैसे देना चाहा
उसने मुस्कुराकर कहा था - आपकी हालत तो मैं भी जानता हूँ
कमरे में आते-आते भीग गई थी मेरी आँखें
किन्तु चीख़ कर रो नहीं पाया था उस रात
उसे व्यवस्था और इस मुखौटाधारी समाज ने मारा है
कोरोना मारेगा या ख़ुद ही मर जाऊँगा
मौत भी नहीं रुकी
भूख से मेरे लोगों की सूची कहीं देखी है आपने
ख़ुदकुशी कर चुके उस कचौड़ी वाले के परिवार को
मैंने नहीं देखा !!
मैं कुछ नहीं कर पाया
अपने तमाम अपराधों में
मैं इसे भी शामिल करता हूँ
मजबूरी या विवशता कह कर इस अपराध से
मुक्त नहीं होना चाहता ....
Wednesday, May 27, 2020
उनके बिना कोई सभ्यता खड़ी नहीं हो सकती
रेल पथ पर
या कहीं और
मरते मजदूरों और उनके परिजनों पर
कोई कविता नहीं लिख पाया
सच कहूं तो
मैं हिम्मत नहीं कर पाया
उन शवों में मैंने हर वक्त
खुद को मरा हुआ पाया
न ही किसी से कह सका
इन तमाम लाशों के बीच
आपने मुझे पहचाना नहीं
मुझे तो लगा
आप सभी ज़िंदा हैं !!
मजदूर रोज मरते हैं और
जन्म लेते हैं
उनके बिना
कोई सभ्यता खड़ी नहीं हो सकती
किंतु अब उनकी मौत को
हत्या ही कहा जाएगा !!
Sunday, May 24, 2020
व्यवस्था ने उसे मार दिया
चाकू से नहीं मारा गया
ज़हर ख़रीदने के पैसे भी नहीं थे उसके पास
कोई घर भी नहीं बचा था जहां चुपके से वह लगा लेता फांसी
फिर पुलिस लगा दी गयी
कि जहां कहीं चलते हुए देखा जाए
बेरहमी से उसकी पिटाई हो
किन्तु हत्या की सभी साज़िशें बन चुकी थी उसकी
वो बेख़बर था
समान की गठरी और बच्चों को उठाए हुए
उसने कहीं रोटी मांगी
कहीं पानी
उसे सरकारी डंडों से पीटा गया
पहले उसके बच्चों ने दम तोड़ दिया
फिर किसी गाड़ी ने उसे सड़क पर कुचल दिया
बच गया था,पर
व्यवस्था ने उसे मार दिया
विश्वकर्मा था !!!
Wednesday, May 20, 2020
हम भूल गये हैं ख़ुद से सवाल करना
भूल गये हैं शायद खुदीराम बोस का बलिदान
भगत सिंह की शहादत
और अब रोहित वेमुला की क़ुरबानी
दाभोलकर, कलबुर्गी और गौरी लंकेश को
नहीं बना सकते सुंदर भविष्य अपने लिए
वे भटका दिए गये हैं
धर्म की अफ़ीम पिला कर
मानव शव
हम दर्पण से डरने लगे हैं शायद
ख़ुद से सवाल करना
बचने के लिए
उठ खड़ा होना पड़ेगा ख़ुद से
जब तक जारी रहेगा नरसंहार का यह खेल
यानी तानाशाही...
Monday, May 18, 2020
वे देह से मरे हैं
आत्महत्या कर लेते हैं
क्यों ?
आत्महत्या से मर रहे हैं लोग
भुखमरी से मर रहे हैं बच्चे
पैदल चलने से मर रहे हैं
ख़ुद को मरा हुआ देखता हूं
हम आत्मा से
सरकारी आदेश है
आत्मनिर्भर बनो!!
Wednesday, May 13, 2020
यातनाओं के पैर नहीं होते
उसे इंसान ढोता है
कभी अकेले
कभी मिलकर
यात्रा का समय है
और तुम ..
कहीं गुम हो
Tuesday, April 14, 2020
तुम्हारे सवालों ने उस घेरे को तोड़ दिया है
Sunday, March 29, 2020
जो बच जायेंगे इस महामारी से उन्हें भूख निगल लेगी
टीवी पर करता है मन की बात
पत्रकार खेल रहा है अंताक्षरी
कुछ को चलती गाड़ी ने कुचल दिया
कुछ भूख से तड़प रहे हैं
कन्या पूजा करने वाले पिशाच
सड़क पर बेहोश पड़ी मासूम बच्चियों को छोड़ कर
अपने बंगले में
रामायण देख रहे हैं
उनकी नींद उड़ चुकी है
भूख मर गयी है
लाखों मौतें प्रायोजित हैं
आगे के दिनों में
जो बच जायेंगे इस महामारी से
उन्हें भूख निगल लेगी
कुछ जेलों में मारे जायेंगे
कुछ विवश कर दिए जायेंगे
ख़ुदकुशी के लिए
क्यों भ्रम है कि हम सुरक्षित हैं
ये धरती बंजर हो रही है
और नदियां रक्त में भीग चुकी हैं
यह जोर से चीखने का वक्त है
युद्ध की पीड़ा उनसे पूछो ....
. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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. 1. मैं युद्ध का समर्थक नहीं हूं लेकिन युद्ध कहीं हो तो भुखमरी और अन्याय के खिलाफ हो युद्ध हो तो हथियारों का प्रयोग न हो जनांदोलन से...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...